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प्रतिक्रमण सूत्र ।
उतनी बार अशुभ कर्म काटा जाता है; सारांश यह है कि सामायिक से ही अशुभ कर्म का नाश होता है ॥१॥ * सामाइअम्मि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं, बहुसो सामाइअं कुज्जा ॥२॥
अन्वयार्थ-'उ' पुनः ‘सामाइअम्मि' सामायिकवत 'कए' लेने पर 'सावओ' श्रावक 'जम्हा' जिस कारण 'समणो इव' साधु के समान हवई' होता है 'एएण' इस 'कारणेणं' कारण [वह ] 'सामाइअं' सामायिक 'बहुसो' अनेक बार 'कुज्जा' करे ॥२॥
भावाथ----श्रावक सामायिकत्रत लेने से साधु के समान उच्च दशा को प्राप्त होता है, इसलिए उस को बार बार सामायिकवत लेना चाहिये ॥२॥
मैंने सामायिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया, विधि में कोई अविधि हुई हो तो मिच्छामि दुक्कडं ।
दस मन के, दस वचन के, बारह काया के कुल बत्तीस दोषों में से कोई दोप लगा हो तो मिच्छा मि दुक्कडं ।
* सामायिके तु कृते, श्रमण इव श्रावको भवति यस्मात् ।
एतेन कारणेन, बहुशः सामायिकं कुर्यात् ॥२॥ १-मन के १० दोषः-(१) दुश्मनको देख कर जलना । (२) अविवेकपूर्ण