Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 275
________________ प्रतिक्रमण सूत्र। से अशुभ भाषण किया और काया से अशुभ कार्य किया, वह सब निष्फल हो ॥ ४ ॥ + सामाइयपोसहसं,-द्वियस्स जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्यो, सेसो संसारफलहेऊ ॥५॥ भावार्थ--सामायिक और पौषध में स्थित जीव का जितना समय व्यतीत होता है, वह सफल है और बाकी का सब समय संसार-वृद्धि का कारण है ॥ ५॥ [जय महायस । जय महायस जय महायस जय महाभाग जय चिंतियसुहफलय जय समत्थपरमत्थजाणय जय जय गुरुगरिम गुरु । जय दुहत्तसत्ताण ताणय थंभणयाटिय पासजिण, भवियह भीमभवत्थु भयअवं गंताणतगुण । तुज्झ तिसंझ नमोत्थु ॥१॥* + सामायिकपौषधसंस्थितस्य जीवस्य याति यः कालः । स सफलो बोद्धव्यः शेषः संसारफलहेतुः ॥५॥ +जय महायशो जय महायशो जय महाभाग जय चिन्तितशुभफलद, जय समस्तपरमार्थज्ञायक जय जय गुरुगरिम गुरो । जय दुःखार्तसत्त्वानां त्रायक स्तम्भनकस्थित पाश्वजिन । भव्यानां भीमभवास्त्र भगवन् अनन्तानन्तगुण ॥ तुभ्यं त्रिसन्ध्यं नमोऽस्तु ॥१॥ * भिन्न-भिन्न प्रतियों में यह गाथा पाठान्तर वाली है। जैसे:-'गिरिम' तथा 'गग्मि' 'भबुत्थु' तथा 'भवत्थु' 'भव अवर्णताणतगुण' तथा 'भयअवीणताणतगुण' । हम ने अर्थ और व्याकरणं की तरफ दृष्टि रख कर उसे कल्पना से शुद्ध किया है । सम्भव है, असली मूल पाठ से वह न भी मिले। मूल शुद्ध प्रति वाले मिला कर सुधार सकते है और हमें सूचना भी दे सकते है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298