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परिशिष्ट ।
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पापस्थान' कह कर 'सव्वस्स वि देवसिय, इच्छाकारेण संदिसह
भगवन् ०' तक कहे । जब गुरु 'पडिक्कमह' कहे तब 'इच्छं, मिच्छमि दुक्कड' कहे । फिर प्रमार्जनपूर्वक बैठ कर 'भगवन् सूत्र भएँ ?' कहे । गुरु के 'भणह' कहने पर 'इच्छं' कह कर तीनतीन या एक-एक वार नमुक्कार तथा 'करेमि भंते' पढ़े । फिर 'इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे देवसियो ० ' कह कर 'वंदितु' सूत्र पढ़े । फिर दो वन्दना दे कर 'अब्भुट्टिओमि अब्भिंतर देवसियं खामेउं, इच्छं, जं किंचि अपत्तियं ०' कह कर फिर दो वन्दना देवे और 'आयरिय उवज्झाए' कह कर 'करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी' आदि कह कर दो लोगस्स का काउस्सम्ग करके प्रगट लोगस्स पढ़े । फिर 'सव्वलोए' कह कर एक लोगस्स का काउस्सग्ग करे और उस को पार कर ' पुक्खरखर०, सुअस्स भगवओ ० ' कह कर फिर एक लोगस्स का काउस्सग्ग करे । तत्पश्चात् 'सिद्धाणं बुद्धाणं, सुअदेवयाए०' कह कर एक नमुक्कार का काउस्सग्ग कर तथा श्रुतदेवता की स्तुति पढ़ कर 'खित्तदेवयाए करेमि ० ' कह कर एक नमुक्कार का काउस्सग्ग करके क्षेत्रदेवता की स्तुति पढ़े | बाद खड़े हो कर एक नमुक्कार गिने और प्रमार्जनपूर्वक बैठ कर मुहपत्ति पडिलेहन कर दो वन्दना दे कर 'इच्छामो अणुसट्ठि' कह कर बैठ जाय । फिर जब गुरु एक स्तुति पढ़ ले तब मस्तक पर अञ्जली रख कर 'नमो खमासमणाणं, नमोऽर्हत्सिद्धा ० ' कहे | बाद श्रावक 'नमोस्तु वर्धमानाय ० ' की तीन स्तुतियाँ और श्राविका 'संसारदावानल० '