Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 288
________________ परिशिष्ट । २१ , बाईं ओर आसन रख कर खमासमण - पूर्वक 'इच्छा' कह कर 'सामायिक मुहपत्ति पडिले हुँ' कहे । गुरु के 'पडिलेहेह' कहने पर 'इच्छं' कह कर मुहात्ति पडिल्हे । फिर खमासमण - 'इच्छा० कह कर सामायिक सेदिसाहु, सामायिक ठाउं, इच्छं, इच्छकार भगवन् पसायकरि सामायिक दंड उच्चरावो जी' कहे १ बाद तीन वार नमुक्कार, तीन वार 'करेमि भंते ' 'सामाइयं' तथा 'इरियावहियं इत्यादि के उत्सग्ग तथा प्रगट लोगस्स तक सब विधि प्रभात के सामायिक की तरह करे | बाद नीचे बैठ कर मुहपत्ति का पडिलेहन कर दो वन्दना दे कर खमासमणपूर्वक 'इच्छकारि भगवन् पसायकरि पच्चक्खाण कराना जी' कहे। फिर गुरु के मुख से या स्वयं या किसी बड़े के मुख से दिवस चरिमं का पच्चक्खाण करे | अगर तिविहाहार उपवास किया हो तो कहना न दे कर सिर्फ मुहपत्ति पडिलेहन करके पच्चक्खाण कर लेवे और अगर चउव्विहाहार उपवास हो तो मुहपत्ति पडिनेहन भी न करे । बाद को एक-एक खमासमण पूर्वक 'इच्छा' कह कर 'सज्झाय संदिसांहुँ ?, राज्झाय करूँ ?' तथा 'इच्छं' यह सब पूर्व की तरह क्रमशः कहे और खड़े हो कर खनाम-पूर्वक आठ ननुक्कार गिने । फिर एक-एक खमासमण-पूर्वक 'इच्छा' कह कर 'बेसणे संदिसाहु, बेसणे ठाउँ ?' तथा 'इच्छं' यह सब क्रमशः पूर्व की तरह कहे ।

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