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विधियाँ।
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खड़ा हो कर दोनों हाथ जोड़ कर एक नवकार पढ़ कर 'इच्छाकारि भगवन् पसायकरी सामायिक-दण्ड उच्चरावो जी' कहे । पीछे 'करेमि भंते' उच्चर या उच्चरवावे । फिर 'इच्छामि खमा०, इच्छा० बेसणे संदिसाहुं ? इच्छं' फिर 'इच्छामि खमा० इच्छा० बेसणे ठाउं ? इच्छं' फिर 'इच्छामि खमा०, इच्छा० सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं' फिर 'इच्छामि खमा०, इच्छा० सज्झाय करूं इच्छं ।' पीछे तीन नवकार पढ़ कर कम से कम दो घडी-पर्यन्त धर्मध्यान, स्वाध्याय आदि करे ।
सामायिक पारने की विधि । खमासमण दे कर इरियावहियं से एक लोगस्स पढ़ने तक की क्रिया सामायिक लेने की तरह करे । पीछे 'इच्छामि खमा०, मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं' कह कर मुहुपत्ति पडिलेहे। बाद 'इच्छा
१--"बेसणे संदिसाहुं" कह कर बैठने की इच्छा प्रकट की जाती है और उस पर अनुमति मांगी जाती है । "बेसणे ठाउं" कह कर आसन प्रहण करने की अनुमति मांगी जाती है ।
आसन ग्रहण करने का उद्देश्य स्थिर आसन जमाना है, कि जिस से निराकुलता-पूर्वक सज्झाय, ध्यान आदि किया जा सके ।
२-"सज्झाय संदिसाहुं" कह कर सज्झाय की चाह पूगट कर के इस पर अनुमति मांगी जाती है और “सज्झाये ठाउं" कह कर सज्झाय में प्रवृत्त होने की अनुमति मांगी जाती है ।
_ स्वाध्याय ही सामायिक व्रत का प्राण है । क्यों कि इस के द्वारा ही समभाव पैदा किया जा सकता और रखा जा सकता है तथा सहज सुख के अक्षय निधान की झाकी और उस के पाने के मार्ग, स्वाध्याय के द्वारा ही मालम किये जा सकते हैं।