Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 255
________________ २१६ प्रतिक्रमण सूत्र । ___ जब घर का आदमी पौषधशाला में भोजन ले आवे तब एकान्त में जगह पडिलेह के आसन बिछाकर चौकड़ी लगा कर बैठ के इरियावहिय पडिक्कम के नवकार पढ़ कर मौनपने भोजन करे । बाद मुख-शुद्धि कर के दिवसचरिम तिविहाहार का पच्चक्खाण करे। पीछे इरियावहिय पडिक्कम के जय वीयरायपर्यन्त जगचिंतामणि का चैत्य-वन्दन करे। ___ जब छह घड़ी दिन बाकी रहे तब स्थापनाचार्यजी के सम्मुख दूसरी बार की पडिलेहना करे । उस की विधि इस प्रकार है:__ इच्छामि, इच्छा०, बहुपडिपुण्णा पोरिसी, कह कर इच्छामि०, इच्छा ० इरियावहिय एक लोगस्स का कायोत्सर्ग पार के प्रगट लोगस्स कहे । पीछे "इच्छामि०, इच्छा० गमणागमणे आलोउं ? इच्छं' कह के " इरियासमिति, भासासमिति, एसणासमिति, आदान-भंडमत्त-निक्खेवणासमिति, पारिट्ठावणियासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति, एवं पञ्च समिति, तीन गुप्ति, ये आठ प्रवचनमाता श्रावक धर्मे सामायिक पोसह मैं अच्छी तरह पाली नहीं, खण्डना विराधना हुई हो वह सब मन वचन काया से मिच्छा मि दुक्कडं" पढ़े। पीछे “इच्छामि०, इच्छा० पडिलेहण करुं ? इच्छं; इच्छामि०, इच्छा० पौषधशाला प्रमाणु ? इच्छे" कह कर उपवास किया हो तो मुहपत्ति, आसन, चरवला ये तीन पडिलेहे । और जो खाया हो तो धोती और कंदारा मिला कर पाँच वस्तु पडिलेहे । पीछे 'इच्छामि०, इच्छा० पसायकरी पडिलेहणा पडिलेहावोजी' ऐसा कह कर जो बड़ा हो.

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