Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 252
________________ विधियाँ। २१३ इच्चकारेण०, बहुपडिपुण्णा पोरिसी ? इच्छामि०, इरियावहिय०, तस्स उत्तरी०, अन्नत्थ० और एक लोगस्स का काउस्सग्ग; प्रकट लोमस्स, इच्छामि०, इच्छ० पडिलेहण करुं ? इच्छं, कह कर मुहपत्ति पडिलेहे। पीछे गुरु महाराज हो तो उन को वन्दना कर के पच्च. क्खाण करे । पीछे सब साधुओं को वन्दना कर के ज्ञान-ध्यान पठन-पाठन आदि शुभ क्रिया में तत्पर रहे । लघुशङ्का (पेशाब) वगैरह की वाधा टालने को जाना हो तो प्रथम पेशाब करने के निमित्त रखा हुआ कपड़ा पहन कर शुद्ध भूमि को देख कर "अणुजाणह जस्सुग्गहो" कह कर मौनपने वाधा टाले । पीछे तीन वख्त “ वोसिरे' कह कर अपने स्थान पर आ कर प्रासुक (गरम) पानी से हाथ धो कर धोती बदल कर स्थापनाचार्यजी के सम्मुख इच्छामि० दे कर इरियावहियं० पडिकमे | पेशाब वगैरह की शुचि के निमित्त गरम पानी वगैरह का प्रथम से ही किसी को कह कर बन्दोबस्त कर रखे ___पौषध लेने के पीछे श्रीजिनमन्दिर में दर्शन करने को जरूर जाना चाहिये। इस वास्ते उपाश्रय (पौषधशाला) में से निकलते हुए तीन बार 'आवरसहि' कह के मौनपने 'इरियासमिति' रखते हुए श्रीजिनमन्दिर में जावे । वहाँ तीन बार 'निसिही' कह कर के मन्दिर जी के प्रथम द्वार में प्रवेश करे । मूलनायकजी के सम्मुख हो कर दूर से प्रणाम कर के तीन प्रदक्षिणा देवे । पीछे रङ्गमण्डप में प्रवेश कर के दर्शन, स्तुति

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