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विपियाँ।
१९९ एण' कह कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग' करे । काउस्सग्ग पूरा होने पर 'नमो अरिहंताणं' कह कर उसे पार के प्रकट (खुला) 'लोगस्सै' पढ़े। पीछे 'इच्छामि खमा०' दे कर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सामायिकमुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं' इस प्रकार कह कर पचास बोल
१-हर जगह काउस्सग्ग के करने का यही मतलब है कि दोषों की आलोचना या महात्माओं के गुण-चिन्तन द्वारा धीरे धीरे समाधि का अभ्यास डाला जाय, ताकि परिणाम-शुद्धि द्वारा सभी क्रियाएँ सफल हों।
एक 'लोगस्स' के काउस्सग्ग का कालमान पच्चीस श्वासोच्छ्वास का माना गया है। [आवश्यकनियुक्ति, पृ० ७८७ ] । इस लिये 'चंदेमु निम्मलयरा' तक वह किया जाता है; क्यों कि इतने ही पाठ में मध्यम गति से पच्चीस श्वासोच्छ्वास पूरे हो जाते हैं ।
२ - इस का उद्देश्य देववन्दन करना है, जो सामायिक लेने के पहले आवश्यक है । यही संक्षिप्त देववन्दन है। ३-सूत्र अर्थकरी सद्दडं ...
सम्यक्त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, मिथ्यात्वमोहनीय परिहरु ३ काम-राग, स्नेह-राग, दृष्टि-राग परिहरुं सुदेव, सुगुरु, सुधम आदरं ... कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरं ... ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरं ज्ञान-विराधना, दर्शन-विराधना और चारित्र-विराधना परिहरु मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति आदरं मन-दण्ड, वचन-दण्ड, काय-दण्ड पंरिहरु हास्य, रति, अरति परिहरूं ... भय, शोक, दुगुञ्छा परिहरु ... कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या परिहरु
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