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पच्चक्खाण सूत्र ।
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भावार्थ - सूरज उगने के समय से ले कर दो घड़ी दिन निकल आने पर्यन्त चारों आहारों का नमुक्कारसहिय मुट्ठि - सहिय पच्चक्खाण किया जाता है अर्थात् नमुक्कार गिन कर मुट्ठी खोलने का संकेत कर के चार प्रकारका आहार त्याग दिया जाता है । वे चार आहार ये हैं: - (१) अशन — रोटी आदि 1 भोजन, (२) पान – दूध पानी आदि पीने योग्य चीजें, (३) खादिम --- फल मेवा आदि और (४) स्वादिम - सुपारी, लवङ्ग आदि मुखवास । इन आहारों का त्याग चार आगारों . (छूटों ) को रख कर किया जाता है । वे चार आगार ये हैं : -- (१) अनाभोग- बिल्कुल याद भूल जाना । (२) सहसाकार - पोरिसी का सजातीय होने से उस के आधार पर प्रचलित हुआ है । इसी तरह अव पुरिमनु के आधार पर और बियासण एकासन के आधार पर प्रचलित हैं । [धर्मसंग्रह पृ० १९१] । चव्विहाहार और तिविहाहार दोनों प्रकार के उपवास अभत्तट्ठ हैं । सायंकाल के पाणहार, चउव्विहाहार, तिविहाहार और दुविहाहार, ये चारों पच्चक्खाण चरिम कहलाते हैं ।
देसावगासिय पच्चक्खाण उक्त दस पच्चक्खाणों के बाहर है । वह सामायिक और पौषध के पच्चक्खाण की तरह स्वतन्त्र है । देसावगासिय बूत वाला इस पच्चक्खाण को अन्य पच्चक्खाणों के साथ सुबह-शाम प्रहण करता है ।
२ - दूसरों को पच्चक्खाण कराना हो तो 'पच्चक्खाइ' और 'वोसिरइ' और स्वयं करना हो' तो 'पच्चक्खामि' और 'वोसिरामि' कहना चाहिए ।
१ – रात्रि भोजन आदि दोष निवारणार्थ नमुक्कारसहिअ पच्चक्खाण
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है । इस की काल मर्यादा दो घड़ी की मानी हुई है । यद्यपि मूल पाठ में दो
घड़ी का बोधक कोई शब्द नहीं है तथापि परंपरा से इस का काल-मान कम - से कम दो घड़ी का लिया जाता है । [ धर्मसंग्रह पृ० १६५ ] ।