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पच्चक्खाण सूत्र । १८० खाइम, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह । ___ भावार्थ-इस पच्चक्खाण में दिन के शेष भाग से ले कर संपूर्ण रात्रि-पर्यन्त पानी को छोड़ तीन आहार का त्याग किया जाता है।
[(४)-दुभिहाहार-पच्चखाण।] दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, दुविहरि आहारं असणं, खाइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं चोसिरह ।
भावार्थ-इस पच्चक्खाण में दिन के शेष भाग से ले कर संपूर्ण रात्रि-पर्यन्त पानी और मुखवास को छोड़ कर शेष दो थाहारों का त्याग किया जाता है।
[(५)-देसावगासिय-पच्चखाण ।] देसावगासियं उवभोगं परिभोगं पच्चक्खाइ; अन्नत्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह।
भावार्थ-सातवें व्रत में भोगोपभोग की चीजों का जितना परिमाण प्रातःकाल में रक्खा है अर्थात् सचित्त द्रव्य,
१-एगासण आदि नहीं करने वाला व्यक्ति इस को करने का अधिकारी है। ___ २-सातवें व्रत का संकोच करने के अभिप्राय से ‘उवभोगं परिभोग' शब्द हैं। केवल छठे व्रत का संकोच करने वाले का ये शब्द नहीं पढ़ने चाहिए। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अणुव्रत आदि सब व्रतों का संक्षेप भी इसी पच्चक्खाण द्वारा किया जाता है । [ धर्मसंग्रह पृ० १।