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प्रतिक्रमण सूत्र ।
का कारण है, इस लिये मोक्ष का प्रधान साधन है। वह सब पदार्थों को प्रदीप के समान प्रकाशित करता है, अत एव वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अद्वितीय सारभूत है ॥३॥ निष्पकव्योमनीलद्युतिमलसदृशं बालचन्द्राभदंष्ट्र,
मत्तं घण्टारवेण प्रसृतमदजलं पूरयन्तं समन्तात् । आरूढो दिव्यनागं विचरति गगने कामदः कामरूपी, यक्षः सर्वानुभूतिः दिशतु मम सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम् ॥४॥
भावार्थ- [यक्ष की स्तुति । ] सर्वानुभूति नाम का यक्ष मुझ को सब कामों में सदा सिद्धि देवे । यह यक्ष अपनी इच्छा के अनुसार अपने रूप बनाता है, भक्तों की अभिलाषाओं को पूर्ण करता है और दिव्य हाथी पर सवार हो कर गगन-मण्डल में विचरण करता है । उस दिव्य हाथी की कान्ति स्वच्छ आकाश के समान नीली है; उस के मदपूर्ण नेत्र कुछ मुँदे हुये हैं और उस के दाँत की आकृति द्वितीया के चन्द्र के समान है । वह हाथी घण्टा के नाद से उन्मत्त है और झरते हुए मद-जल को चारों ओर फैलाने वाला है ॥४॥