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प्रतिक्रमण सूत्र ।
४. नियन्त्रित-जिस रोज़ जिस पच्चक्खाण के करने का संकल्प कर लिया
गया हो उस रोज़, रोग आदि अड़चनें आने पर भी वह संकल्पित पच्चक्खाण कर लेना। यह पच्चक्खाण चतुर्दश-पूर्वधर जिनकल्पी और
दश-पूर्वधर मुनि के लिये है। इस लिये इस समय विच्छिन्न है। ५. साकार-आगारपूर्वक -छूट रख कर-किया जाने वाला पच्चक्खाण । ६. अनाकार-छूट रक्खे बिना किया जाने वाला पच्चक्खाण । ७. परिमाणकृत - दत्ती, कवल या गृह की संख्या का नियम करना । ८. निरवशेष-चतुर्विध आहार तथा अफीम, तबाखू ' आदि अनाहार
वस्तुओं का पच्चक्खाण। १. सांकेतिक-संकेत-पूर्वक किया जाने वाला पच्चक्खाण । मुट्ठी में अँगूठा
रखना , मुट्टी बाँधना, गाँठ बाँधना, इत्यादि कई संकेत हैं । सांकेतिक पच्चक्खाण पोरिसी आदि के साथ भी किया जाता है और अलग भी । साथ इस अभिप्राय से किया जाता है कि पोरिसी आदि पूर्ण होने के बाद भोजन-सामग्री तैयार न हो या कार्य-वश भोजन करने में विलम्ब हो तो संकेत के अनुसार पच्चक्खाण चलता रहे । इसी से पोरिसी आदि के पच्चक्खाण में मुट्टिसहिय इत्यादि कहा जाता है । पोरिसी आदि पच्चक्खाण न होने पर भी सांकेतिक पच्चक्खाण किया जाता है। इस
का उद्देश्य सिर्फ सुगमता से विरति का अभ्यास डालना है। १०. अद्धा पच्च०-समय की मर्यादा वाले, नमुक्कार-सहिअ-पोरिसी इत्यादि पच्चक्खाण। --[आ० नियु० गा० १५६३-१५७९; भगवती शतक ७, उद्देश २, सूत्र २७२]
इस जगह साढ पोरिसी, अवड्ढ, और बियासण के पच्चक्खा ण दिये गये हैं । ये आवश्यकनियुक्ति गा० १५९७ में कहे हुए दस पच्चक्खाण में नहीं हैं। वे दस पच्च० ये हैं:
१. नमुक्कारसहिय, २. पोरिसी, ३. पुरिमड्ढ, ४. एकासण, ५. एकलठान, ६. आयंबिल, ७. अभत्तट्ट (उपवास), ८. चरिम, ९. अभिग्रह और १०. विगइ । तो भी यह जानना चाहिये कि साढ पोरिसी पच्चक्खाण