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सिद्धाणं बुद्धाणं ।
५७ अन्वयार्थ–'सिद्धाणं' सिद्धि पाये हुए 'बुद्धाणं' बोध पाये हुए 'पारगयाणं' पार पहुँचे हुए 'परंपरगयाणं' परंपरा से गुणस्थानों के क्रम से सिद्धि पद तक पहुँचे हुए 'लोअगं' लोक के अग्र भाग पर 'उवगयाणं' पहुँचे हुए 'सव्वसिद्धाणे' सब सिद्धजीवों को 'सया' सदा 'नमो' नमस्कार हो ॥१॥
भावार्थ-जो सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, पारगत हैं, क्रमिक बाल विकास द्वारा मुक्ति-पद पर्यन्त पहुँचे हुए हैं और लोक के ऊपर के भाग में स्थित हैं उन सब मुक्त जीवों को सदा मेरा नमस्कार हो ॥१॥
[ महावीर की स्तुति] * जो देवाणवि देवो, जं देवा पंजली नमसंति ।
तं देवदेव-महिरं, सिरसा वंदे महावीरं ॥२॥
अन्वयार्थ–'जो' जो ‘देवाणवि' देवों का भी 'देवो' देव है और 'जजिसको ‘पंजली' हाथ जोड़े हुए 'देवा' देव 'नमसति' नमस्कार करते हैं 'देवदेवमाहिरं देवों के देव-इन्द्र द्वारा पूजित [ ऐसे ] 'तं उस 'महावीरं' महावीर को 'सिरसा' . सिर झुका कर 'वंदे वन्दन करता हूँ ॥२॥
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* यो देवानामपि देवो यं देवाः प्राञ्जलया नमस्यान्त । वं देवदेव- महितं शिरसा वन्दे महावीरम् ॥२॥