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मुगुरु-वन्दन ।
[ वीर्याचार का स्वरूप ] अणिगृहिअ-बलविरिओ, परक्कमह जो जहुत्तमाउत्तों । जुंजड़ अ जहाथामं, नायव्वो वीरिआयारो || ८ | अन्वयार्थ – 'जो' जो 'अणिगृहिअ - बलविरिओ' कायबल तथा मनोबल को बिना छिपाये 'आउत्तो' सावधान होकर 'जहुतं' शास्त्रोक्तरीति से 'परक्कमइ' पराक्रम करता है 'अ' और 'जहाथामं' शक्ति के अनुसार 'जुजइ' प्रवृत्ति करता है [ उसके उस आचरण को ] ' वीरिआयारो' वीर्याचार 'नायव्वों'
जानना ||८||
२९ - सुगुरु-वन्दन सूत्रे |
+ अनिगूहितबलवीर्यः, पराक्रामति यो यथोक्तमायुक्तः । युक्ते च यथास्थाम ज्ञातव्यो वीर्याचारः ||८||
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१ - आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और रत्नाधिक-पययज्येष्ठ(आवश्यकनियुक्ति गा० ११९५ ) ये पाँच सुगुरु हैं । इनको वन्दन करने के समय यह सूत्र पढ़ा जाता है, इसलिये इसको 'सुगुरु-वन्दन' कहते हैं । इस के द्वारा जो वन्दन किया जाता है वह उत्कृष्ट द्वादशावर्त - वन्दन है । खमासमण सूत्र द्वारा जो चन्दन किया जाता हैं वह मध्यम थोभ-वन्दन कहा जाता है | थोभ-वन्दन का निर्देश आवश्यक नियुक्ति गा० ११२७ में है । सिर्फ मस्तक नमा कर जो वन्दन किया जाता है वह जघन्य फिच वन्दन हैं । ये तीनों वन्दन गुरु-वन्दन- भाष्य में निर्दिष्ट हैं ।
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सुगुरु-वन्दन के समय २५ आवश्यक विधान ) रखने चाहिये, जिनके.. न रखने से वन्दन निष्फल हो जाता है; वे इस प्रकार हैं: