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१४६ प्रतिक्रमण सूत्र ।
अन्वयार्थ-'अर्थ' अब 'सलिल पानी, 'अनल' आग्नि, 'विष' जहर, 'विषधर' साँप, 'दुष्टग्रह' बुरे ग्रह, 'राज' राजा, 'रोग' बीमारी और 'रण' युद्ध के 'भयतः' भय से; तथा 'राक्षस' राक्षस, 'रिपुगण' वैरि-समूह, 'मारी' प्लेग, हेजा आदि रोग, 'चौर' चोर, 'ईति' अतिवृष्टि आदि सात ईतियों आरै 'श्वापदादिभ्यः' हिंसक प्राणी आदि से 'त्वम्' तू 'रक्ष रक्ष' बार बार रक्षा कर, 'सुशिवं कल्याण 'कुरु कुरु' बार बार कर, 'सदा' हमेशा 'शाति' शान्ति 'कुरु कुरु' बार बार कर, 'इति' इस प्रकार 'तुष्टिं परितोष 'कुरु कुरु' बार बार कर, 'पुष्टिं' पोषण 'कुरु कुरु' बार बार कर 'च' और 'स्वस्ति' मंगल 'कुरु कुरु' बार बार कर ॥१२॥१३॥ ___भावार्थ हे देवि ! तू पानी, आग, विष, और सर्प से बचा । शनि आदि दुष्ट ग्रहों के, दुष्ट राजाओं के, दुष्ट रोग के
और युद्ध के भय से तू बचा । राक्षसों से, रिपुओं से, महामारी से, चोरों से, अतिवृष्टि आदि सात ईतियों से और हिंसक प्राणियों से बचा । हे देवि ! तू मंगल, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि और कल्याण यह सब सदा बार बार कर ॥१२॥१३॥ . भगवति ! गुणवति ! शिवशान्ति,
तुष्टिपुष्टिस्वस्तीह कुरु कुरु जनानाम् । ओमिति नमो नमो हाँ,
ही हूँ हः यःक्षः ही फुट फुट् स्वाहा ॥१४॥ १-'फट फट्' इत्यपि ।
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