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प्रतिक्रमण सूत्र ।
की सूचना दे देना, और (५) नियमित क्षेत्र के बाहर ढेला, पत्थर आदि फेंक कर वहाँ से अभिमत व्यक्ति को बुला लेना ॥ २८ ॥ [ ग्यारहवें व्रत के अतिचारों की आलोचना ] * संथारुच्चारविही, पमाय तह चैव भोयणाभोए ।
पोसहविहिविवए, तइए सिक्खावए निंदे || २९ ॥ अन्वयार्थ -- 'संथार' संथारे की और 'उच्चार ' लघुनीतिबड़ीनीति — पेशाब - दस्त की 'विही' विधि में 'पमाय' प्रमाद हो जाने से 'तह चेव' तथा 'भोयणाभोए' भोजन की चिन्ता करने से 'पोसहविहिविवरीए' पौषध की विधि विपरीत हुई उसकी 'तइए' तीसरे 'सिक्खावए' शिक्षावूत के विषय में 'निंदे' निन्दा करता हूँ ॥२९॥
भावार्थ — आठम चौदस आदि तिथियों में आहार तथा शरीर की शुश्रूषा का और सावध व्यापार का त्याग कर के ब्रह्मचर्य पूर्वक धर्मक्रिया करना, यह पौषधोपवास नामक तीसरा शिक्षाव्रत अर्थात् ग्यारहवाँ व्रत है । इस व्रत के अतिचारों की इस गाथा में आलोचना की गई है। वे अतिचार ये हैं :
* संस्तरोच्चारविधि, प्रमादे तथा चैव भोजना भोगे । पौषधविधिविपरीते, तृतीये शिक्षावते निन्दामि ॥ २९॥
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+ पासहाववासस्स समणो• इमे पंच०, तंजहा - अप्प डिलेहिय दुप्पाड - लोईयासज्जासंथारए, अप्पमाज्जयदुप्पमज्जियासिज्जासधारए, अप्पडिलेहियदुष्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियउच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अणणुपाल [T] या [ आव० सू०, पृ० ८३५ ]