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आचार की गाथायें।
६५ सम्यक्त्व के निमित्त 'अ' और 'चरणमि' चारित्र के निमित्त 'तवम्मि' तप के निमित्त 'तह य' तथा 'विरियम्मि' वीर्य के निमित्त 'आयरणं आचरण करना आयारो' आचार है 'इअ' इस प्रकार सेविषयभेद से 'एसो' यह आचार 'पंचहा' पाँच प्रकार का "भाणओ कहा है ॥१॥ ___ भावार्थ-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य के निमित्त अर्थात् इन की प्राप्ति के उद्देश्य से जो आचरण किया जाता है वही आचार है । पाने योग्य ज्ञान आदि गुण मुग्न्यतया पाँच हैं इस लिये आचार भी पाँच प्रकार का माना जाता है ॥१||
[ज्ञानाचार के भेद ] * काले विणए बहुमाणे उवहाणे तह अनिण्हवणे । . वंजणअत्थतदुभए, अविहो नाणमायारो ॥२॥
अन्ययार्थ---'नाणं ज्ञान का 'आयारो' आचार 'अट्ठावहो' आठ प्रकार का है जैसे 'काले' काल का 'विणए' विनय का 'बहुमाणे बहुमान का वहाणे' उपधान का 'अनिण्हवणे' अनिव-नहीं छिपाने का 'वंजण' व्यञ्जन-अक्षर--का 'अत्थ' अर्थ का तह' तथा 'तदुभए' व्यञ्जन अर्थ दोनों का ॥२॥
भावार्थ--ज्ञान की प्राप्ति के लिये या प्राप्त ज्ञान की
* काल विनये बहुमाने, उपधाने तथा अनि हवने । व्यञ्जनार्थनदुभये अविधो ज्ञान-आचारः ।।२।।