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प्रतिक्रमण सूत्र । विसालसुहावहस्स' कल्याणकारी और परम उदार सुख अर्थात् मोक्ष को देने वाले 'देवदाणवनरिंदगणच्चिअस्स' देवगण, दानवगण, और नरपतिगण के द्वारा पूजित, [ ऐसे ] 'धम्मस्स' धर्म के 'सारं' सार को 'उवलम' पा कर ‘पमायं प्रमाद 'को' कौन करे' करेगा ? ॥३॥ + सिद्धे भो ! पयओ णमो जिणमए नंदी सया संजमे ।
देवनागसुवनकिन्नरगणस्सब्भूअभावच्चिए । लोगो जत्थ पहाडिओ जगमिणं तेलकमच्चासुरं । धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ॥४॥
अन्वयार्थ-'भो' हे भव्यों ! [ मैं ] ‘पयओ' बहुमानयुक्त हो कर 'सिद्धे' प्रमाण भूत 'जिणमये' जिनमत-जिन-सिद्धान्त को 'णमो' नमस्कार करता हूँ [जिस सिद्धान्त से ] 'देवं-नागसुवन्न-किन्नरगण' देवों, नागकुमारों, सुवर्णकुमारों और किन्नरों के समूह द्वारा ‘स्सब्भूअभावच्चिए' शुद्ध भावपूर्वक अर्चित + सिद्धाय भोः ! प्रयतो नमो जिनमताय नन्दिः सदा संयम ।
देवनागमुवर्णकिन्नरगणसद्भुतभावार्चिते ॥ लोको यत्र प्रतिष्टितो जगदिदं त्रैलोक्यमांसुरं । . धर्मो वर्धतां शाश्वतो विजयतो धर्मोत्तरं वर्धतां ॥४॥
१-ये भवनपति निकाय के देव-विशेष हैं । इन के गहनों में साँप का चिह है और वर्ण इन का सफेद है ॥
२-ये भी भवनपति जाति के देव हैं इन के गहनों में गरुड़ का चिह और वर्ण इन का सुवर्ण की तरह गौर है ।(बृहत्संग्रहणी गा०४२-४४)।
३-ये व्यन्तर जाति के देव हैं । चिह्न इन का अशोक वृक्ष है जो
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