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लटें उसके भावात्मक सौन्दर्य में चार चाँद लगा रही हैं। वैसे भी उसका मुख-मण्डल अत्यन्त प्रशान्त और आत्म-सम्मुख बन पड़ा है। - 2. नेमिनाथ : जटाओं की विचित्रता और लम्बाई की दृष्टि से उल्लेखनीय एक मूर्ति और भी इसी मन्दिर के गर्भगृह में तीसरी वेदी (बायें से दायें) पर स्थित 5 फुट 3 इंच - 1 फुट 11 इंच के शिलाफलक पर अंकित है। मस्तक पर बीसों लटों को एक बड़े ही संयोजित और पेचीदा ढंग से गूंथा गया है। इतने पर भी कलाकार को सन्तोष नहीं हुआ तो उसने दो-दो लटे कन्धों पर और बीसों लटें पीछे दोनों ओर बिखेर दी हैं। यह अवश्य स्वीकार करना होगा कि कलाकार कला के भावपक्ष का भी मर्मज्ञ था। उसने जहाँ जटाओं की संयोजना में अद्भुत कौशल का परिचय दिया है वहाँ मूर्ति के मुखमण्डल पर नासाग्र दृष्टि और वैराग्य की अपूर्व छटा बिखेर दी है।
3. अन्य उल्लेखनीय मूर्तियाँ : जटाओं की लम्बाई की दृष्टि से कुछ अन्य मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं जिनमें से बारहवें मन्दिर के प्रदक्षिणापथ में अवस्थित पचीसवें (बायें से दायें) शिलाफलक की तथा नवम मन्दिर के गर्भगृह में अवस्थित अभिनन्दननाथ' की और छठवें मन्दिर के गर्भगृह में विद्यमान आदिनाथ की तथा चौथे मन्दिर की उत्तरी और पश्चिमी भित्तियों (भीतर) एवं जैन-चहारदीवारी में जड़ी हुई मूर्तियाँ विशेष हैं।
(ब) फणावलि तथा सर्पकुण्डली की दृष्टि से उल्लेखनीय मूर्तियाँ
1. पार्श्वनाथ : कुछ मूर्तियाँ फणावलि और सर्पकुण्डली की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं, जिनमें से पचीसवें मन्दिर के गर्भगृह में विद्यमान पाँचवें शिलाफलक की पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति दर्शनीय है। इसके सर्प की कुण्डली, अन्य मूर्तियों
1. कुछ अन्य मूर्तियों की भाँति यह मूर्ति भी जटायुक्त होने पर भी आदिनाथ की नहीं, नेमिनाथ की ___ है। क्योंकि उसके सिंहासन पर बायें पार्श्व यक्ष और दायें अम्बिका यक्षी का स्पष्ट अंकन है। 2. दे.-चित्र सं. 73। 3. इस मूर्ति की दूसरी विशेषता यह है कि जटाओं के रहते हुए भी इसका लांछन बन्दर स्पष्ट अंकित
4. दे.-चित्र सं. 58। 5. दे.-चित्र सं. 651 6. दे.-चित्र सं. 75। 7. दे.-चित्र सं. 69। 8. दे.-चित्र सं. 71। 9. तुलना कीजिए-यहीं के पन्द्रहवें मन्दिर के मूलयानक के बायें अवस्थित पार्श्वनाथ की पद्मासन
मूर्ति से।
मूर्तिकला :: 139
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