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में भी किया जाना चाहिए।
वर्गीकरण : अब हम उक्त पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में देवगढ़ की जैन देव-देवी मूर्तियों का अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। सुविधा की दृष्टि से हम इन्हें पाँच वर्गों में विभक्त करेंगे
(1) यक्ष (शासनदेव) (2) यक्षी (शासनदेवी) (3) विद्या देवी (4) प्रतीकात्मक देव-देवियाँ : लक्ष्मी, सरस्वती, नवग्रह, गंगा, यमुना, नागी
और नाग। (5) अन्य देव-देवियाँ : (अ) इन्द्र-इन्द्राणी, (व) उद्घोषक, (स) परिचारकपरिचारिकाएँ, (द) कीर्तिमुख, (इ) कीचक, (ई) द्वारपाल, (उ) क्षेत्रपाल । (अ) यक्ष (शासनदेव)
देवगढ़ में केवल तीन यक्षों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं : गोमुख, पार्श्व और धरणेन्द्र।
गोमुख : गोमुख एकमात्र ऐसा यक्ष है जिसका मुख मनुप्य के समान न होकर बैल के समान है। इसकी कुछ मूर्तियाँ यहाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें से मं. सं. तीन, बारह (चित्र संख्या 98), उन्नीस और बाईस की उल्लेखनीय हैं। मन्दिर संख्या तीन
1. कुछ मूर्तियों का समीकरण सम्भव नहीं था, क्योंकि कुछ बहुत अधिक खण्डित हैं। और कुछ न
तो प्रायः किसी शास्त्रीय विधान के अन्तर्गत आती हैं, और न किसी परम्परा या परिस्थिति से
उनका सम्बन्ध जुड़ता है। 2. (अ) सव्येतरोर्ध्वकरदीप्तपरश्वधाक्षसूत्रं तथाधरकराड़कफलेष्टदानम् । प्राग्गोमुखं वृषमुखं वृपगं वृपाङ्कभक्तं वजे कनकभं वृपचक्रशीर्पम् ॥
__-- पं. आशाधर : प्रसा ., 3-129। (ब) वामान्योर्ध्वकरद्वयेन परशुं धत्तेऽक्षमालामधः ।
सव्यासव्यकरद्वयेन ललितं यो वीजपूरं वरम् । तं मूनां कृतधर्मचक्रमनिशं गोवक्त्रक गोमुखम् । श्री नामेयजिनेन्द्रपादकमला लोलालिमालापये ॥
नमिचन्द्र देव : प्र.ति., 7-1, पृ. 3:।। (स) वराक्षसूत्रे पाशश्च मातुलिङ्गं चतुर्भुजः । श्वतवां वृषमुखो वृषभासनसंस्थितः ।।
भवनदेवाचार्य : अपरा, पृ. 569। (द) चतुर्भुजःसुवर्णाभः गोमुखो बृपवाहनः । हस्तेन परशं धत्तं बीजपूराक्षसूत्रकम् ॥ वरदानपर: सम्यक् धर्मचक्रं च मस्तके।
-वी.सी. भट्टाचार्य : जन आटकानाग्राफ़ी (लाहार, 199), पृ. १।।
145 " देवगढ़ की जन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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