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सामाजिक जीवन
1. अध्ययन के स्रोत
देवगढ़ के प्राचीन और मध्यकालीन सामाजिक जीवन एवं संस्कृति का मूल्यांकन करने के लिए वहाँ उपलब्ध तथा उससे सम्बन्ध रखनेवाले अन्य स्रोतों का अध्ययन आवश्यक है। मन्दिरों की भित्तियों, मूर्तिफलकों और शिलापट्टों पर अंकित सामाजिक
और सांस्कृतिक दृश्य इस अध्ययन में सहायक हैं। अभिलेखीय उल्लेख भी उपयोगी हैं। स्वयं देवगढ़ में लिखा गया कोई साहित्य नहीं मिलता पर अन्यत्र लिखे गये साहित्य से यहाँ के सामाजिक जीवन और संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इन सबके अतिरिक्त, मन्दिरों और मूर्तियों की अधिकता एवं कलात्मकता आदि कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिनसे तत्कालीन समाज की आर्थिक सम्पन्नता, परिष्कृत रुचि और धार्मिक निष्ठा का परिचय प्राप्त होता है। इन सब स्रोतों से हमें अनेक तथ्यों पर विचार करना है : वहाँ का समाज किन वर्गों में विभक्त था, उसकी आर्थिक स्थिति कैसी थी, धर्मपरायणता की प्रवृत्ति वहाँ किस सीमा तक थी, शिक्षा का प्रचार और उसके साधन क्या थे, लिपि और भाषा क्या थी, वेश-भूषा और प्रसाधन के क्या रूप थे और आमोद-प्रमोद के साधन क्या थे।
2. समाज के विभिन्न वर्ग 1. उच्च और निम्न वर्ग
समाज का वर्गगत विभाजन प्रायः आज की ही भाँति प्राचीनकाल में भी सम्भव था। देवगढ़ इसका अपवाद नहीं है। वहाँ कुछ लोग उच्चवर्ग के और कुछ निम्नवर्ग के थे। यहाँ निम्नवर्गीय समाज के अंकन प्रायः बहुत कम हैं, परन्तु उच्चवर्गीय समाज की अच्छी झाँकी मिलती है। सम्भ्रान्तवर्ग के लोग बहुमूल्य वस्त्र
232 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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