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समृद्धि का एक कारण और भी था, वह यह कि यहाँ बड़े पैमाने पर मूर्तियों का निर्माण होता था। समीपवर्ती कलाकेन्द्रों-दूधई, चाँदपुर, जहाजपुर, आमनचार, सेरोन, बानपुर, ललितपुर आदि को मूर्तियों की अधिकांश पूर्ति कदाचित् देवगढ़ से ही की जाती थी।
9. निष्कर्ष
समाज के विभिन्न वर्गों, धर्मपरायणता, शिक्षा, लिपि और भाषा, वेशभूषा तथा प्रसाधन, आमोद-प्रमोद तथा आर्थिक स्थिति के सूक्ष्म अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है :
1. देवगढ़ की जैन कला में चित्रित समाज सभ्य, सरल और शान्त था। 2. उसकी धार्मिक उदारता और निष्ठा सराहनीय थी। 3. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चारों पुरुषार्थों का यथोचित समन्वय
यहाँ के निर्जीव पाषाणों में जीवन्त कर दिया गया प्रतीत होता है। 4. भारतीय संस्कृति की पवित्रता यहाँ अपनी पूर्णता को प्राप्त हुई है।
250 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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