Book Title: Devgadh ki Jain Kala
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 287
________________ 5. न्द्रः । एते प्रसन्नगुणरत्ननिधौ निविष्टा, यत्तद्गुणप्रकररत्नमये शरीरे ।।(4) तदीयामात्य-मन्त्रीन्द्रो रमणीपूर्वविनिर्ग(. तः। वत्सराजेति विख्यातः श्रीमान् महीधरात्मजः ।। (5) ख्यातो बभूव किल मन्त्रिपदैकमन्त्रे वाचस्पतिस्त.... 7. दिह मन्त्रगुणैरुभास्याम्।। योऽयं समस्तमपि मण्डलमाशु शत्रोराच्छिद्य कीर्तिगिरि-दुर्गमिदं व्यधत्त ॥ (6) 8. श्रीवत्सराजघाट्टोऽयं नूनं तेनात्र कारितः । ब्रह्माण्डमुज्ज्वलं कीर्तिमारोहयितुमात्मनः । संवत् 1154 चैत्रबदि 2 बुधौ। अभिलेख क्रमांक तीन (उपाध्याय मूर्ति पर उत्कीर्ण, विक्रम संवत् 1333) सं. 1333 ज्येष्ठबदि 11 रवी श्री नन्दिसंघ बलात्कारगणे आचार्यश्री कनकचन्द्रदेव तस्य शिष्य लक्ष्मीचन्द्र देव तस्य शिष्य हेमचन्द्रदेव । रामचन्द्र तस्य माता सागरसिरि तस्य चेली सालसिरि, उदयसिरि, छात्रनामदेव। प्रणमति नित्य। सरधान-मत सुतहुसौ प्रणमति नित्यं । अभिलेख क्रमांक चार (दिल्ली संग्रहालय में सुरक्षित, विक्रम संवत् 1481) 1. · वृषभ जयत संश्रीमद्वर्द्धमानमहोदये विपुलं विलसत्कान्तौ कान्ताख्येऽमृत सागरे। सुगतसुमतिमन्नैणांकाकलंक सकौमुदं वितनुते सतां शान्त्यै शान्तिश्रियं सुमिर्तिजयं ।। 1 ।। ... भुवः श्रोते नश्वरानुदयाय ते। तच्चिदुद्यज्ज्वल-ज्ज्योतिरार्हतं श्रेयसे श्रिये ॥2॥ पायादपायात् सदयः सदा नः सदाशिवो यद्विशदो हिताप्तो चंचच्चिदा . नन्दविशुद्धचन्द्रद्युतो चकोरं त्यपि (?) शुद्धहंसाः ॥3॥ श्रीशंकरं श्रीरमणाभिरामं... सल्लक्ष्मणमहणार्ह । जिनेन्द्रनन्दं धनदं सुमित्रमजातशत्रु विभजे चकोरं ॥1॥ स्ववाममायामंयमप्यमायं वामं लसल्लक्ष्मण महणाह। सीतेशसुग्रीवमहाहणार्ह वन्दे 3. सहर्ष सहसैकशीपं ॥5॥ सशल्यदुःशासननाशहेतुमजातशत्रु सहदेववयं । वन्दे विशालार्जुन सद्य... नन्दत्सतां कर्णकुलं मृगांक ॥6॥ वामयैघाष्टक (?) स्वेन कम्माधाक्षीद् यरक्षरं (:)। साद्योर्द्धिदुरेखं तम्हंलीयं विलयश्रियं ॥7॥ विगजन्नागरजाक अभिलेख-पाठ :: 285 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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