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एक पंक्ति । (ग) अशुद्ध संस्कृत, देवनागरी । (घ) अज्ञात । (ङ) प्रदाता - त्रिभुवनकीर्ति ।
107. (क) जैन मन्दिर संख्या 20 में चार फुट ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) एक पंक्ति । (ग) संस्कृत, देवनागरी । (घ) संवत् 1135 | (ङ) प्रदात्री आर्यिका लवणश्री ।
108. (क) जैन मन्दिर संख्या 20 में पाँच फुट नौ इंच ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) दो पंक्तियाँ । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी । (घ ) अज्ञात । (ङ) अस्पष्ट ।
109. (क) उक्त मन्दिर में एक तीर्थंकर मूर्ति का सिंहासन । (ख) एक पंक्ति । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी । (घ) अज्ञात । (ङ) इस तीर्थंकर - मूर्ति की प्रतिष्ठा लोकनन्दी के शिष्य द्वारा हुई ।
110. (क) उक्त मन्दिर में चार फुट दो इंच ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) एक पंक्ति । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी । (घ) अज्ञात । (ङ) प्रदाता मौना
साह ।
111 (क) उक्त मन्दिर में चार फुट छह इंच ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) तीन पंक्तियाँ । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी । (घ) संवत् 1136 | (ङ) सरजासौधरा के पुत्र द्वारा इस मूर्ति के समर्पण का विवरण |
112. ( क ) जैन मन्दिर संख्या 21 के मण्डप की भित्ति । (ख) दो पंक्तियाँ । (ग) संस्कृत, देवनागरी । (घ ) अज्ञात । (ङ) श्री गुणनन्दी आदि का आदरपूर्वक उल्लेख |
113. (क) उक्त मन्दिर में चार फुट ग्यारह इंच ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) एक पंक्ति। (ग) संस्कृत, देवनागरी । (घ) अज्ञात । (ङ) अस्पष्ट है। 114. (क) उक्त मन्दिर में चन्द्रप्रभ स्वामी की पद्मासन मूर्ति । (ख) दो पंक्तियाँ । (ग) संस्कृत, देवनागरी । (घ) संवत् 1136 । (ङ) आ. लोकनन्दी के शिष्य गुणनन्दी द्वारा यह मूर्ति प्रतिष्ठित हुई ।
115. (क) उक्त मन्दिर में पाँच फुट साढ़े चार इंच ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्ति । (ख) दो-दो पंक्तियों के दो अभिलेख । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी । (घ) अज्ञात । (ङ) आ. लोकनन्दी के शिष्य गुणनन्दी द्वारा यह मूर्ति प्रतिष्ठित हुई ।
116. (क) उक्त मन्दिर के मण्डप की भित्ति । (ख) एक पंक्ति । ( ग ) संस्कृत, देवनागरी। (घ) अज्ञात । (ङ) लोकनन्दी के शिष्य गुणनन्दी द्वारा इस भित्ति के पुनरुद्धार का संकेत ।
117. (क) जैन मन्दिर संख्या 21 में चार फुट साढ़े सात इंच ऊँची मल्लिनाथ
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