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संवत् 1616 (1589 ई.) चन्देरी की राजगद्दी पर अभिषिक्त हुआ माना जाता है । ' 3. समाज का चित्रण : जैसा कि सप्तम अध्याय में कहा जा चुका है, समाज का चित्रण करने में देवगढ़ से प्राप्त अभिलेखों का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उनसे समाज की विभिन्न गतिविधियों और रीति-रिवाजों का बोध होता है । समाज के वर्गीकरण का अनुमान भी इनकी सहायता से किया जा सकता है।
गोत्र तथा उपजातियाँ: कठनेरा और उसके साढ़े बारह गोत्र, अग्रोतक, 2 गर्ग, अष्टशाख, 1 गोलापूर्व आदि उपजातियों के उल्लेख तो केवल अभिलेखों से ही प्राप्त होते हैं ।
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सम्मानित पद : समाज के कुछ विशिष्ट श्रावक-श्राविकाओं का भिन्न-भिन्न प्रसंगों में उल्लेख हुआ है। इन उल्लेखों से निष्कर्ष निकलता है कि आधुनिक काल की भाँति उस काल में भी समाज में पण्डित' और प्रतिष्ठाचार्य' आदि का प्रचलन था । प्रतिष्ठाता, प्रतिष्ठात्री, संघाधिपति" और सिंघई " आदि जैसी पदवियाँ भी प्रदान की जाती थीं ।
उदार श्रावक-श्राविकाएँ : यहाँ के अभिलेखों के अनुसार कल्याणसिंह (10), 12 छात्र (परि. दो, अभि. तीन), रामचन्द्र ( वही), देव (वही), साहजी ( 22 ),
1. (अ) गजेटियर ऑफ़ दी युनाइटेड प्राविंसेज, जिल्द 24, पृ. 1981 (ब) जे. ए. एस.बी., जिल्द 71, भाग एक, 1902 ई., पृ. 125 पर पाद टिप्पणी ।
दे. - परि. दो, अभि. क्र. 41
2-3.
4. दे. - परि. दो, अभि. क्र. 5 ।
5. दे. - परि. दो, अभि. क्र. 6 ।
6. दे. - पं. अजित सिंह, ललितसिंह (परि. एक, अभि. 8), पं. गुणनन्दिन् (वही, अभि. 17, 114, 119), पं. शुभंकरदेव और पं. लालदेव (वही, अभि. 22), पं. माघनन्दी (वही, अभि. 95 ), पं. गोपाल (वही, अभि. 101 ), पं. नेमिदेव (वही, अभि. 128 ), पं. नयनसिंह (परि. दो, अभि. 5) आदि पण्डितों के नाम ।
7. दे. - अजितसिंह (परि. एक, अभि. 45), कमलदेवाचार्य (वही, अभि., 58), लोकनन्दी का शिष्य ( वही, अभि. 109 ), नयनसिंह (परि. दो, अभि. 5) आदि प्रतिष्ठाचार्यों के नाम ।
8. दे. - राजपाल (परि. एक, अभि. 60), मठपति जज (वही, 61), गंगक और शिवदेव (वही, 86 ), कमलदेव के शिष्य श्रीदेव (परि. दो, अभि. एक) आदि प्रतिष्ठाताओं के नाम ।
9. दे. - सोमती (परि. एक, अभि. 51), मदन (वही, 52 ), धनिया (वही, 59), अमोदनी (वही, 104) आदि प्रतिष्ठात्रियों की नामावलि ।
10. दे. - होली (परि. दो., अभि. चार), जुगराज (वही, पाँच) आदि संघाधिपतियों के नाम ।
11. दे. - सिंघई लक्ष्मण, अर्जुन, जुगराज, चतुर्थवत (परि. दो, अभि. पाँच) आदि सिंघई उपाधिधारियों
के नाम ।
12. यहाँ कोष्ठक में दर्शित अंक परिशिष्ट एक तथा दो में निर्दिष्ट अभिलेखों की संख्या के सूचक हैं ।
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