________________
थे, जैसा कि एक ही भट्टारक के विभिन्न स्थानों पर उल्लेखों से ज्ञात
होता है। 3. धर्म के उत्थान में श्रावक-श्राविकाओं का योगदान भी उल्लेखनीय है, जो
समय-समय पर विभिन्न उत्सवों के आयोजन करते रहते थे और मन्दिरों तथा मूर्तियों के निर्माण में अपने न्यायोपात्त द्रव्य का सदुपयोग किया
करते थे। 4. साधुओं को निवासगृहों एवं अन्य सुविधाओं की व्यवस्था भी इन्हीं के
द्वारा होती थी। देवगढ़ में जैनधर्म के प्रचार का अधिकांश श्रेय वहाँ के श्रावक-श्राविकाओं को ही था, क्योंकि खजुराहो, चन्देरी, ग्वालियर आदि की भाँति इस स्थान को राज्याश्रय कभी नहीं मिला। देवगढ़ में जैनधर्म का आविर्भाव और विकास उच्च स्तर पर और तीव्र गति से हुआ, शानदार मन्दिर और कलापूर्ण मूर्तियाँ इस तथ्य के जीवन्त प्रमाण हैं।
1. उदाहरण के लिए पद्मनन्दी, रत्नकीर्ति, ललितकीर्ति, देवेन्द्रकीर्ति, आदि का उल्लेख ललितपुर,
गंजबासौदा, बीकानेर आदि के अभिलेखों में प्राप्त होता है। दे.-(अ) अगरचन्द्र नाहटा, भँवरलाल नाहटा : बीकानेर जैन लेखसंग्रह (कलकत्ता, 2482 वी.नि.), लेखांक 1373, 1444 तथा 1514 (पृ. 180, 193 और 302)। (ब) कुन्दनलाल जैन : गंजबासौदा के जैन मूर्ति व यन्त्र लेख : सन्मति सन्देश (अगस्त, 1965 ई.), पृ. 35-36।
धार्मिक जीवन :: 231
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org