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कुत्ता : यहाँ कुत्ता (कुक्कुर ) का अंकन क्षेत्रपाल के वाहन के रूप में ही मिला
है । '
(ब) पक्षी
देवगढ़ की जैन कला में विभिन्न पक्षियों के अंकन मिलते हैं । इनमें गरुड़ (चित्र संख्या 99, 100 और 111 ), मयूर (चित्र संख्या 76 और 112 ), हंस ( चित्र संख्या 96), और चक्रवाक (चित्र संख्या 56 ) उल्लेखनीय हैं। इनके अंकन प्रायः वाहनों और लांछनों के रूप में हुए हैं। सभी आलेखन बहुत आकर्षक हैं ।
( स ) अन्य जीव-जन्तु
सर्प : सर्प, जो तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के साथ उनके पूर्व-भव से ही सम्बद्ध रहा है, यहाँ शतशः अंकित हुआ है। 2 पार्श्वनाथ की मूर्ति का वह एक अविभाज्य अंग-सा बन गया है। मथुरा की कुषाण कालीन मूर्तियों में भी वह देखा जा सकता है और अब निर्मित होनेवाली मूर्तियों में भी उसकी उपस्थिति दर्शायी जाती है । यहाँ वह अपने सशक्त सात फणों की अवलि ताने हुए संसार के आततायियों को ललकारता हुआ-सा प्रतीत होता है । उसकी कुण्डली अपने उपास्य का कभी आसन', कभी पृष्ठवर्ती उपधान' और कभी दोनों बनकर तथा कभी दोनों पावों में अंगरक्षक के रूप में उपस्थित रहकर अपूर्व भक्ति की सृष्टि करती है। परम्परागत रूप में ही सर्प सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के मस्तक पर पाँच फणों की अवलि फैलाये दिखाया जाता है। कभी-कभी वह धरणेन्द्र - पद्मावती पर भी अपनी फणावलि ताने रहता है। नाग - मिथुन के रूप में भी इसके दर्शन होते हैं ।" और कभी-कभी वह तपस्या-रत बाहुबली के शरीर पर भी रेंग जाता है । "
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1. दे. - चित्र सं. 113।
2. कुछ के लिए दे. - चित्र सं. 55, 56, 63, 69, 70711
3. दे. - चित्र सं. 56, 69, 70, 71 आदि ।
4. दे. - चित्र सं. 71।
5. दे. - चित्र सं. 69, 701
6. दे. - चित्र सं. 55 |
7. दे. - चित्र सं. 8 में सुपार्श्वनाथ ।
8. दे. - चित्र सं. 107 से 110 तक तथा 112 |
9. दे. - विभिन्न मन्दिरों के द्वार पक्षों पर गंगा-यमुना के पार्श्व में नाग - नागी मूर्तियाँ। और भी
दे. - चित्र सं. 6-7, 33 आदि।
10. दे. - चित्र सं. 86 से 88 तक ।
206 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन
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