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यद्यपि उक्त भट्टारक यह अनुभव करते थे कि उनसे शास्त्रोक्त मुनिचर्या का पालन नहीं होता, तथापि उन्होंने अपना उल्लेख मुनि, यति, गणी, सूरि आदि नामों से किया । इसका एकमात्र कारण यह था कि जैन परम्परा में मुनि और श्रावक ये दो ही वर्ग हैं। यदि वे अपने को मुनि नहीं लिखते तो क्या श्रावक लिखते । यदि वे अपने को श्रावक लिखते तो धर्म और समाज की दृष्टि से उनका पद और स्थान उच्चकोटि का कैसे होता । शिविका में आरूढ़ होकर अपने ऊपर चँवर कैसे डुलवाते । राजाओं द्वारा मान्यता कैसे प्राप्त करते, एवं श्रावकों पर शासन भी कैसे करते । कला में इनके आलेखनों से स्पष्ट ध्वनित होता है कि वे अपने को असाधारण रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे । इसीलिए उन्होंने अपने को मुनि कहलाना ही उचित समझा। इसके लिए वे प्रारम्भ में दीक्षा धारण करते समय नग्नलिंग धारण करके 'मुनिव्रत' धारण करने का विधान पूर्ण कर लेते थे ।
तत्पश्चात् कालदोष का बहाना लेकर तत्कालीन पंचों के तथाकथित आग्रह से वस्त्र ग्रहण करते थे। ऐसी प्रवृत्ति उन्होंने चाहे किसी भी परिस्थिति में की हो, किन्तु वह 'उत्सूत्र'" प्रवृत्ति ही कही जाएगी और उनका यह मार्ग ' भट्टारकपन्थ'
कहलाएगा।
किन्तु जिस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में वस्त्रधारी मुनि माने जाते हैं, उसी प्रकार दिगम्बर परम्परा में वस्त्रधारी भट्टारक मुनि नहीं माने जा सकते, जैसे श्वेताम्बर सम्प्रदाय में जैन प्रतिमा की पूजा-पद्धति में पंचामृत से अभिषेक करना तथा शासन देवों की उपासना आदि करने का विधान है, उसी प्रकार दिगम्बर सम्प्रदाय के भट्टारक पन्थ में ऐसे ही विधान दृष्टिगोचर होते हैं ।
3. साधुधर्म
आवास-प्रबन्ध
देवगढ़ में मुनियों का केवल आवागमन ही नहीं होता था, अपितु निवास भी था। जैसा कि कहा जा चुका है, अब भी वहाँ ऐसे अनेक मन्दिर विद्यमान हैं (दे. चित्र 2, 13, 29 आदि) जो मूलतः मन्दिर न होकर साधुओं के निवासस्थान थे, उनका निर्माण शास्त्रानुमोदित मन्दिर पद्धति पर नहीं हुआ है। इनमें साधुगण कदाचित् स्थायी रूप से भी रहते थे । इतना तो अवश्य है कि वे अपने जीवन का अन्तिम समय इन्हीं निवासस्थानों में, देवगढ़ के पवित्र और स्वास्थ्यप्रद वातावरण में व्यतीत करते थे ।
1. उत्सूत्र का अर्थ है शिथिल, अनियमित, अनुशासन से स्खलित होना । देखिए - प्रो. वामन शिवराम आप्टे : संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी (वाराणसी, 1963), पृ. 1031
2. दूध, दही, घी, सुगन्ध ( चन्दन का द्रव) और इक्षुरस का मिश्रण 'पंचामृत' कहलाता है।
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धार्मिक जीवन
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