________________
भी अंकित की गयी है।
पद्मावती के साथ किये गये इसके अंकन विशेष रूप से विचारणीय हैं।'
(ब) यक्षी (शासनदेवी)
देवगढ़ के कलाकार ने तीर्थंकर-मूर्तियों के पश्चात् सर्वाधिक मूर्तियाँ शासन देवियों की ही निर्मित कीं। शासन देवियों में भी चक्रेश्वरी, अम्बिका और पद्मावती के अतिरिक्त किसी अन्य की मूर्तियाँ वहाँ नहीं मिली हैं। ये मूर्तियाँ तीर्थंकर-मूर्तियों के साथ कम और स्वतन्त्र रूप से अधिक निर्मित की गयी हैं। कुछ को प्रवेश-द्वारों पर और मानस्तम्भों की देवकुलिकाओं में भी उत्कीर्ण किया गया है। सभी एक ही युग की देन नहीं हैं। सभी में, अपने-अपने वर्ग में भी लाक्षणिक समानता नहीं है। प्रायः सभी बहुमूल्य वस्त्रों और रत्नाभूषणों से अलंकृत हैं। अधिकांश को ललितासन या राजलीलासन में आसीन या कुछ को खड़ी हुई दिखाया गया है।
वे बैठी हों या खड़ी, उनके अंग-प्रत्यंग संयम की सीमा नहीं तोड़ सके हैं। खजुराहो या अन्य स्थानों की भाँति उनके शरीर पर यौवन का उभार तो है, पर उन्माद नहीं है। उनके दर्शन से हमारा मन विकारों से नहीं, बल्कि भक्ति से भर उठता है। अपने पति की गोद में बैठी रहकर भी देवी अपने साथ बैठे पुत्र के प्रति जिस वात्सल्य और मातृत्व की भावना को अभिव्यक्त करती है, वह अलौकिक रूप में न सही, पर लौकिक रूप में समाज को निश्चित ही प्राणवान् बनाती है।
इनमें से कुछ मूर्तियों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
चक्रेश्वरी : विभिन्न मन्दिरों और स्तम्भों के अतिरिक्त, चक्रेश्वरी की दो मूर्तियाँ स्थानीय साहू जैन संग्रहालय में भी प्रदर्शित हैं, दोनों विंशतिभुजी हैं। दोनों ही मूर्तियाँ (चित्र 99 और 100) साजसज्जा और कला की दृष्टि से अत्यन्त प्रशंसनीय बन पड़ी हैं। दोनों के आसनों पर तिथिरहित लेख हैं। कलागत विशेषताओं और लेखों की लिपि के आधार पर ये दोनों मूर्तियाँ नवमी-दशमी शताब्दी की प्रतीत होती
1. दे.-जैन चहारदीवारी तथा मं.सं. 24 आदि में जड़ी हुई मूर्तियाँ तथा चित्र सं. 109, 1101 2. दे.-आगे पद्मावती का विवरण, पृ. 189 से 193 तक। 3. दे. -चित्र सं. 99 और 100 । 4. मं.सं. 2 के सामने (पूर्व में) ध्वंसावशेषों में भी विंशतिभुजी चक्रेश्वरी की एक शिरहीन किन्तु ऐसी ___ही मनोज्ञ मूर्ति पड़ी है। 5. म. प्र. के देवास जिले के गन्धावल नामक स्थान में भी विंशतिभुजी गरुड़ासना चक्रेश्वरी की एक - ऐसी ही मूर्ति उपलब्ध है।
150 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org