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पर्यन्त मेरु पर्वत की भाँति अडिग रहकर जो अनुपम तपस्या की, उसके मूल्यांकन में दक्षिण' का कलाकार कितना ही सफल रहा हो, पर देवगढ़ के कलाकार की सफलता पर भी सन्देह नहीं किया जा सकता। वह उनके शरीर का आलिंगन करती हुई लताएँ' तो अंकित करता है, उसपर रेंगते हुए सर्प, वृश्चिक और छिपकलियाँ" आदि भी अंकित करता है।
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1. साहू जैन संग्रहालय में प्रदर्शित बाहुबली : बाहुबली की एक मूर्ति यहाँ ऐसी बन पड़ी है कि उसकी समानता कदाचित् कहीं न मिलेगी। 7 बाहुबली के दोनों ओर एक-एक स्त्री (खड़ी हुई) उनके शरीर पर चढ़ी हुई लताओं को एक-एक करके दूर कर रही हैं। " अपने भक्तों की इस तन्मयता का तनिक भी भान उन्हें नहीं है । यह दृश्य देखकर हमें भगवान् महावीर के समय की उस कथा का स्मरण हो आता है, जिसके अनुसार अपने पति महाराज श्रेणिक द्वारा डाले गये मृत सर्प को एक तपस्वी मुनि के गले से महारानी चेलना बड़ी ही भक्ति और सावधानी से अलग कर रही है । कन्धों तक आ पहुँची जटाएँ और सादा भामण्डल इस मूर्ति की अन्य विशेषताएँ हैं ।
कला की सूक्ष्मता, मुखाकृति की सजीव शान्ति, श्रीवत्स की लघुता और परिकर का अभाव इसे " गुप्तकाल के बाद निर्मित हुई कृति सिद्ध करते हैं। इस दृष्टि से बाहुबली की प्राचीन मूर्तियों में एक इसे भी स्वीकार करना पड़ेगा ।
1. पद्मपुराण, प्रथम भाग, 4-75 ।
2. गंगवंशी राजा राचमल्ल (वि.सं. 1031-41 ) के मन्त्री और सेनापति चामुण्डराय द्वारा श्रवणबेलगोल (मैसूर) में निर्मापित गोम्मटेश्वर बाहुबली की जगत्प्रसिद्ध मूर्ति ।
3. दे. - साहू जैन संग्रहालय, मं. सं. दो और 11 में विद्यमान बाहुबली स्वामी की मूर्तियाँ ।
4. दे. - मं. सं. दो एवं साहूजैन संग्रहालय में स्थित बाहुबली - मूर्तियाँ, तथा चित्र संख्या 86 और 88 ।
5. दे. – मं. सं. 2, 11 तथा साहू जैन संग्रहालय में स्थित बाहुबली - मूर्तियाँ तथा चित्र सं. 86, 87,
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6. साहू जैन संग्रहालय में सुरक्षित ।
7. दे. - चित्र संख्या 86 |
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8. एलोरा की इन्द्रसभा गुफा (संख्या 33 ) में बाहुबली की एक ऐसी ही मूर्ति का आलेखन हुआ है उसपर लताएँ चढ़ी हैं और उसके भी दोनों ओर खड़ी दो स्त्रियाँ उसकी लताओं को एक-एक कर हटा रही हैं (जबकि देवगढ़ में लताओं के साथ सर्प और छिपकली भी चढ़े हैं) ऊपर विद्याधर- युगल मालाएँ लिये उड़ रही हैं। एलोरा मूर्ति के लिए दे. - हेनरिच जिम्मर दी आर्ट आफ़ इण्डियन एशिया, जिल्द एक तथा दो (न्यूयार्क, 1955 ई.), विवरण (जिल्द एक) पृ. 297, और फलक (जिल्द दो) 245 |
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9. डॉ. कामताप्रसाद जैन महाराणी चेलनी ( सूरत, 1967 ई.), पृ. 105-1221 10. दे. - चित्र संख्या 86 |
172 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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