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ही आकर्षण की वस्तु है। इससे स्पष्ट है कि देवगढ़ का कलाकार विद्याधरों के अंकन के प्रति आसक्ति नहीं, अपितु अभिरुचि रखता था।
7. साधु-साध्वियाँ साधु-साध्वियों को मूर्तरूप देने का विधान जैन प्रतिमा-शास्त्रों में नहीं मिलता। उनकी ‘चरणपादुकाओं' और 'निसई' (निषेधिका) के निर्माण का विधान अवश्य है।' जैन ग्रन्थों में प्रयुक्त निसिदिया, निषीदिका, निसीधि, निशिद्धि, निषिद्धि और निषिद्धिगे आदि शब्द उक्त एक ही अभिप्राय को व्यक्त करते हैं। इस विधान का सर्वप्रथम अपवाद तीर्थंकर ऋषभनाथ के द्वितीय पुत्र बाहुबली की मूर्ति-रचना में हमें मिलता है। द्वितीय अपवाद भी कदाचित् उनके अग्रज भरत की मूर्ति-रचना में प्राप्त होता है। भरत और बाहुबली की युगल-मूर्तियाँ देवगढ़ में अनेक स्थानों पर प्राप्त
ग्वालियर में इन दोनों भाइयों की जो युगल-मूर्ति है, वह सम्भवतः संसार की सबसे बड़ी युगल-मूर्ति है। ये दोनों भाई उसी शरीर से मुक्त हो गये थे। उक्त अपवादात्मक परम्परा तब और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है, जब हमें राम-लक्ष्मण, सप्तर्षियों तथा कुछ अन्य मुनियों, जो चरम शरीरी थे, की भी मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। और फिर देवगढ़ के कलाकार के समक्ष तो शास्त्रीय विधान से बढ़कर भक्ति का उद्रेक था। उसकी छैनी जब चलती थी तब भक्ति की अथाह और अटूट गंगा बहा देती थी, उसकी राह में परम्पराओं एवं शास्त्रीय विधानों के छोटे-मोटे पर्वत क्या करते। तभी तो वह भरत-बाहुबली की महान् प्रेरक मूर्तियाँ गढ़ता है, आचार्य महाराज को उपदेशरत दिखाता है, अध्यापन में संलग्न उपाध्याय परमेष्ठी को
1. ध्यात्वा यथास्वं गुर्वादीन् न्यसेत् तत्पादुकायुगे। निषेधिकायां संन्यास-समाधिमरणादि च ॥
-पं. आशाधर : प्रतिष्ठासारोद्धार। (बम्बई, विक्रम सं. 1974), पद्य 1.108 । 2. मुनि कान्तिसागर : खंडहरों का वैभव, पृ. 81 । 3. देखिए-म. सं. दो आदि। 4. (अ) जिनसेन : महापुराण (आदिपुराण), चूंकि पन्नालाल साहित्याचार्य सम्पादित (काशी, 1951
ई.) भाग दो, 361 203 तथा 471 388।। (ब) रविषेण : पद्मपुराण, पं. पन्नालाल जैन सम्पादित (काशी, 1958 ई.), प्रथम भाग, 4177। 5. मं. सं. दो, ग्यारह, साहू जैन संग्रहालय आदि में सुरक्षित। और भी दे.-चित्र सं. 86, 87, 88,
891 6. मं. सं. एक, चार, तथा मं. 12 के सामने के अवशेष और मानस्तम्भ सं. 11 एवं द्वितीय कोट का
प्रवेश-द्वार। और भी दे.--चित्र सं. 77, 78, 79, 80, 81, 82 ।
168 :: देवगढ़ की जैन कला : एक सांस्कृतिक अध्ययन
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