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(इ) 176 मूर्तियों से अंकित स्तम्भ
एक स्तम्भ (संख्या 13) पर चारों ओर छोटी-छोटी 176 मूर्तियाँ निर्मित हैं । मूर्तियों की यह संख्या विचारणीय है, क्योंकि इसकी कोई शास्त्रीय संगति नहीं है । यदि यह संख्या 170 रही होती तो शास्त्रीय संगति मिल जाती। ऐसा प्रतीत होता है कि कलाकार को अभीष्ट रही होगी 170 की ही संख्या, परन्तु स्तम्भ पर स्थान और संयोजना की दृष्टि से विवश होकर उसे 176 की निकटतम संख्या स्वीकार करनी पड़ी होगी। यही अंकन कुछ अन्य स्तम्भों पर भी देखा जा सकता है ।
(ई) सहस्रकूट
एक विशालाकार स्तम्भ (मं. सं. 5 में स्थित सहस्रकूट) पर 1008 लघुकाय पद्मासन और कायोत्सर्गासन तीर्थंकर' मूर्तियाँ अंकित हैं, जो जिनेन्द्र देव के 1008 नामों का भी प्रतीक माना जा सकता है ।
5. देव - देवियाँ
जैन देव - शास्त्र में मौलिक और सर्वोपरि पूज्यता पंच परमेष्ठियों को ही प्राप्त है । प्रारम्भ में तीर्थंकरों (अर्हन्त परमेष्ठी) की ही मूर्तियाँ बनती थीं, बाद में हिन्दू देवताओं और कदाचित् बोधिसत्त्वों की मूर्तियों के अनुकरण या प्रतिस्पर्धा के कारण जैन- देव-देवियों की भी मूर्तियाँ बनने लगीं। शास्त्रीय दृष्टि से चूँकि मोक्ष-प्राप्ति
1. दे. - चित्र सं. 47 |
2. एक ही साथ यदि अधिक से अधिक तीर्थंकर विद्यमान रहें तो वे 170 हो सकते हैं। विदेह क्षेत्र पाँच होते हैं और प्रत्येक में 32 नगरियाँ होती हैं। इन (5 × 32 = 160) नगरियों में से प्रत्येक में भी एक-एक तीर्थकर एक ही साथ हो सकते हैं । इसी तरह पाँच भरत क्षेत्रों और पाँच ऐरावत क्षेत्रों में से प्रत्येक में भी एक-एक तीर्थंकर उसी समय हो सकते हैं। ये सब (160 + 10 = 170) मिलाकर 170 हो जाते हैं ।
3. दे. - स्तम्भ सं. 12, चित्र सं. 46 ।
4. दे. - चित्र सं. 8 ।
5. तीर्थंकर के शरीर में 108 मुख्य और 900 सामान्य लक्षण ( = 1008) सामुद्रिक शास्त्र की दृष्टि से होते हैं । दे. - जिनसेन : महापुराण, पर्व 15, श्लोक 37-44।
6. दे. - उपर्युक्त, पर्व 25, श्लोक 98-99 । तुलना कीजिए - ( 1 ) शिव सहस्रनाम स्तोत्र; श्लोक 16-17 और 35 | (2) विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र ( गोरखपुर, 2023 वि.), श्लोक 2, 6, 12-131 (3) गणेश सहस्रनाम स्तोत्र (गोरखपुर, 2015 वि.), श्लोक 2-51
142 :: देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन
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