Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh View full book textPage 9
________________ यूं तो प्रकरण ग्रन्थ कई संस्थाओ ने प्रकाशित किए है किन्तु लब्धिसूरि पाठशाला एवं गुरूजी के माध्यम से प्रकाशित जीवविचार और.. नवतत्व श्रेषठ प्रकाशन है फिर इनकी भाषा भी हिन्दी है। अब जो दण्डक और लघु संग्रहणी अर्थ सहित हिन्दी में प्रकाशित की जा रही है यह चाबी है / चाबी के बिना ताले नही खुलते ठीक वैसे ही आगमों का अर्थादि ज्ञान पाने के लिए आगम खजाने खोलने के लिए दोनों ग्रन्थ चाबी का काम करेगे क्योकिं जीव विचार को ही दण्डक आगे बढ़ाता है एवं चौवीश दण्डक के माध्यम से जीवों पर विस्तृत प्रकाश डालता है यह जैन शासन का मौलिक ज्ञान है / प्राथमिक ज्ञान है इनके बिना कर्मग्रन्थ आदि पढ़ना एवं समझना आसान नहीं है / ठीक वैसे ही क्षेत्र समास, लोक प्रकाश, बृहद् संग्रहणी आदि एवं जम्बूद्वीप पन्नत्ति, सूर पन्नत्ति, द्वीपसागर पन्नत्ति आदि आगमों का ज्ञान पाना है तो आपको प्रथम लघुसंग्रहणी अवश्य पढ़नी ही पढ़ेगी उस दृष्टि से यह प्रस्तुत पुस्तक खूब ही उपयोगी है। __ लघुसंग्रहणी में यूं तो जम्बूद्वीप से सम्बन्धित पदार्थोका ही विवरण दिया गया है किन्तु वह रास्ता दिखाता है / आगे का हमें इसके अध्ययन से पता चलता है कि जैन धर्म के अनुसार पृथ्वी कितनी विशाल है ? उसका आकार प्रकार क्या है ? .. आज के भौतिक विज्ञान के जमाने में अपने आधे अधूरे ज्ञान के कारण वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को जैसी बताई है ? जितनी बताइहै ? उससे विपरीत इस लघु संग्रहणी में पृथ्वी विशाल एवं विकसीत बताइ है इसका अध्ययन करने पर ही पता चल सकता है।। वर्तमान दृश्यमान पृथ्वी जैन दर्शन के अनुसार मात्र कुछ योजन ही है और यदि भरतक्षेत्र में ही समाई हुई है / पाँचों खण्ड की पृथ्वी भरत क्षेत्र में स्थित है / केवल भरतक्षेत्र 526 योजन और 6 कला जितना विशाल है यह बात लघुसंग्रहणी से समझ में आती है। सारांश में भूगोलखगोल का खजाना खोल दे ऐसी है यह लघुसंग्रहणी और दण्डक प्रकरण जीवों की स्थिति पर प्रकाश डालता है। दोनों नोधपद प्रकरण है आप पढ़े, आपके जीवन में नवप्रकाश का संचार होगा। लिखी जितरत्नसागरजी म.सा 'राजहंस" दक्षिण पावपुरी एरोड्रम के सामने ___ चैन्नई तमिलनाडु 8Page Navigation
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