Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh View full book textPage 7
________________ -गणिवर्य प्रास्ताविकम् श्री जितरत्नसागरजी म.सा ''राजहंस" जब मैं शैशव के श्रृंगार से सज था तभी मेरे बाताजी श्री તીર્થરના શ્રીગી મ.સાં શી પ્રેરણા સે મુડો ભગવાન મહાવીર વગા૫ના. प्राप्त हो गया था। बाल्यकाल से ही अध्ययन में तीव्ररूचि होने से पहले ही चातुमार्स મેં પ્રdoloથે સ્વસ્થ હો ગયે થે | મન મેં તમન્ના થી પ્રસ્થા છે વર્થ करना। 30 दिनों पूज्य गुरूदेव अभ्युदयसागरजी म.सा. शंखेश्वर में आगम मलिहर के कार्य का मार्गदर्शन कर रहे थे अतः शंखेश्वर तीर्थ में अधिक रहते थे। हमने गुरूदेव से कहा 'हमें प्रकरण के अर्थ करना है आप कोई व्यवस्था करें। गुरूदेव बोले-'तुम मांडल चले जाओ वहाँ विदवान पंडितप्रवर श्री नेमचंदभाईरहते है- तुम्हें पढ़ाएंगे।' . हम गुरूदेव की आशीष लेकर मांडल गए / व्याकरण एवं प्रकरण ग्रन्थों का अभ्यास प्रारम्भ हुआ जो आज भी याद है / केसा भव्य क्षण था वह जब सारे दिन हम अध्ययन करते थे। प्रकरण ग्रंथों में कैसा तत्वज्ञान का खजाना भरा पडा है ? वह बात आज इसलिए याद आयी कि पूज्य आगमोध्दारक ध्यानस्थ - स्वर्गस्थ गुरूदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म.सा का जन्मोत्सव दिन बेंगलोर आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट के तत्त्वावधान में मनाया जा रहा था। उस समय विद्याप्रेमी एवं जन-जन के लाडले गुरूजी के प्यारे नाम से पुकारे जाने वाले श्री सुरेन्द्रभाई सी. शाह ने पाठशाला एवं अन्य अभ्यासियों के लिए प्रकरणग्रन्थ का प्रकाशन करने की बात रखी। पूज्य सागरानंदसूरिजी महाराज स्वयं आगम अभ्यासी थे और उनके जन्म दिन पर यह प्रकाशन होने की घोषणा हुई थी अतःलोगों में आनंद एवं उत्साह था। वास्तव में पुस्तकों का प्रकाशन करना उतना सरल नहीं है जितना हम लोग सोचते हैं। कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है तब जाकर प्रकाशन होपाते हैं -फिर सुरेन्द्रभाई को एक कार्य नहीं है / वे बंगलोर की पाठशाला के प्राण है / मैने सुना है कि बेंगलोर की पाठशालाPage Navigation
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