Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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'विक्रमोर्वशीय'ना चोथा अंकमा उन्मत्त पुरूरवानी एकोक्तिओने अनुलक्षीने नाट्यकारे अभिनय माटेना जे विविध सूचनो आपेलां छे, तेमां अनेक परिभाषिक संज्ञाओ वपराई छे । द्विपदिका, जंभलिका, खंडधारा, चर्चरी, भिन्न खंडक, खुरक, वलंतिका, कुटिलिका, मल्लघटी, द्विलय, अर्धचतुरस्रक, स्थानक, गलितक । आमांनी केटलीक संज्ञाओ विविध नर्तनप्रकारनी गतिओने लगती छे ए तो देखीतुं छे, परंतु घणी संज्ञाओ पुरूरवा वडे के अन्य कोई वडे गवाता प्राकृत, अपभ्रंश के संस्कृत पद्यना संदर्भमां वपरायेली छे । वेलणकरे द्विपदिका चर्चरी, खंडक, खंडिका, खंडधारा, गलितक, भिन्नक जेवी संज्ञाओने हेमचंद्र वगेरे प्राकृत पिंगळकारोए वर्णवेला एवां के एने मळतां नामवाळा छंदो साथे सांकळी शकाय के केम तेनी चर्चा करी छे । आ संदर्भमां रंगनाथ अने कोणेश्वरनी 'विक्रमोर्वशीय' उपरनी टीकाओमां प्राप्त माहितीनो वधु ऊहापोह आवश्यक छे । उपरांत विरहांकना 'वृत्तजातिसमुच्चय'मां जे विशिष्ट स्वरूपनी द्विपदीओनुं निरूपण छे अने जे 'जानाश्रयी' ने पण परिचित छे, ११ तेने पण गणतरीमां लेवुं अनिवार्य छे । आ उपरथी ए स्पष्ट थाय छे के घणी वार एकनी एक संज्ञा अमुक छंद माटे अने ते छंदमां रचेला पद्यनी साधे संकळायेला नृत्यविशेष माटे पण वपराती । आ उपरांत 'चर्चरी' जेवी संज्ञा उपरथी जोई शकाय छे के छंद, गीत, ताल, अने नृत्य तथा उत्सव माटे एकनी एक संज्ञा केटलीक वार प्रचलित बनती । संगीतशास्त्रना 'बृहद्देशी', 'संगीतरत्नाकर' वगेरे जेवा ग्रंथोमां अमुक प्राकृत छंदमां रचायेला गीतना राग, स्वरो अने तालनुं जे निरूपण मळे छे, तेमां जे नाम छंदनुं होय छे ते जनम तेनी साथै संकळायेला गेयप्रबंधने आपेलुं जोवा मळे छे । 22 आ उपरथी समजी शकाशे के प्राकृत- अपभ्रंश छंदो, नर्तनप्रकारो अने संगीतप्रबंधोनुं अध्ययन केटलुं बधुं अन्योन्य साथै संकळायेलुं छे । परिणामे ए पण स्पष्ट छे के तेमांथी कोई एकना अध्ययन माटे बीजां बने शास्त्रो घणां उपकारक थई पडे । परंतु आ विषय स्वतंत्रपणे तपासवा योग्य होईने अहीं ते विशे चर्चा करवी इष्ट गणी नथी ।१३
टिप्पण
१. राजशेखरनुं 'छंदः शेखर', जेना मात्र प्राकृत अपभ्रंश छंदोने लगतो पांचमो अध्याय ज मळे छे, ते 'स्वंयभूच्छंद' ना मूळ ग्रंथनो संस्कृत अनुवाद ज छे ।
2. अहीं पालि अन अर्धमागधी साहित्यमां मळता छंदोने बाद राखी, प्रशिष्ट साहित्यना छंदोनी
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