Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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गोंदल द्विपदी, उदाहरण : सई विज्जुल-अविउत्तउ तुहुँ जलहर करि 'गुंदलु' निट्ठ न जाणसि विरहिअहं । इअ भणि चिंतिवि किंपि अमंगल दइअहं अंसु-पवाह पलट्टरपंथिअहं ॥४५
- "हे मेघ, तुं पोते वीजळीनो वियोग न अनुभवतो होवा छतां पण धमाल करी रह्यो छे । तं विरही लोकोनी पीडा जाणतो नथी"-ए प्रमाणे बोलीने पोतानी प्रियाओगें कशुक अमंगल चिंतवता प्रवासीओनी अश्रुधारा वरसी रही छे।' रथ्यावर्णक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, सात चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम रथ्यावर्णक ।
रथ्यावर्णक द्विपदी, उदाहरण : विरह-रहक्कइ सुहय न, जंपइ न हसइ, जीवइ केवलु पिय-पच्चासइ । अहवा कित्तिउ 'रत्थावण्णणु' करिसहुं, निच्छइ स म तुह जसु नासइ॥४६
___ 'हे सुंदर, तारा उत्कट विरहमां नथी ते बोलती के नथी हसती। प्रियतमने मळवानी आशामां ते मात्र जीवी रही छे । अथवा तो अमे निरर्थक केटलुं वर्णन करीए? तेनुं नक्की मरण थशे अने तारो अपजश थशे ।' चर्चरी
जो ए रथ्यावर्णक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम चर्चरी ।
चर्चरी द्विपदीनुं उदाहरण : 'चच्चरि' चारु चवहिं अच्छर, कि-वि रासउ, खेल्लहिं कि-वि कि-वि
गायहि वरधवलुं । रयहिं रयण-सत्थिअ कि-वि दहि-अक्खय गिण्हहिं, कि-वि जम्मूसवि
तुह जिण-धवल ॥ ४७ . 'हे जिनवर, तारा जन्मोत्सवमां (जन्मकल्याणक समये) केटलीक अप्सराओ सुंदर चर्चरी खेले छे, केटलीक रास रमे छे, केटलीक धवलगीतो गाय छे, केटलीक रत्नना साथिया पूरे छे, तो केटलीक दही अने अक्षत ले छे ।' अभिनव
जो ए रथ्यावर्णक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम अभिनव ।
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