Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[ 129 ] जावय-रस-रंजिअ - वर- कामिणि-पडिबिबिहिं लंछिय जइ किर आसि सइ । संपइ हय-वण-गय- रुहिरारुण-'सीह-पयं किअ तुह रिउ घरइं
ति पिच्छिअहि ।। ५१
'तारा शत्रुओना महेल, जे सदा उत्तम सुंदरीओनां अळताथी रंगेलां चरणोनां पगलांथी अंकित रहेता हता, ते हवे सिंहना, जंगली हाथीओ मारवाथी लोहीथी लाल बनेला पंजाओ वडे अंकित थयेला देखाय छे ।'
दीर्घक
जो सिंहपद द्विपदीना प्रत्येक चरणमा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम दीर्घक ।
दीर्घक द्विपदीनुं उदाहरण :
'दीहर' - भुअ-दंड- विडंबिअ-, सुर-सिंधुर- करु, उरयड तुलिअ-विसाल
सिलायलु ।
उब्भड - कोअंड-पयंडिम, हसिअ - धणंजड, पिउ एक्कंगिण जिणइ वेरिबलु ॥ ५२
'जेना दीर्घ भुजदंड ऐरावतनी सूंढ समा छे, जेनुं विशाळ वक्षस्थळ शिलापट्ट समुं छे, पोताना प्रबळ धनुष्यनी प्रचंडताने लीधे जे अर्जुन करतां पण चडी जाय छे, तेवो मारो प्रियतम एकले हाथे शत्रुसेनाने जीते छे ।'
कलकंठीरुत
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने आठ चतुष्कल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम कलकंठीरुत | कलकंठीरुत द्विपदीनुं उदाहरण :
मिउ मलय- समीरणु अंगिहिं, अहिणव-पल्लव, दिट्ठिहिं कलयंठिरुउ' कण्णिहिं । विस-कंदलि- सन्निह मुद्धह, दूसह खणि खणि, पाणंतिउ मुच्छा-भरुअप्पहिं ॥५३ 'अंगोने स्पर्श करतो कोमळ मलयानिल, दृष्टि सामे रहेलां ताजा लीलां पर्ण अनेकाने संभळातो कोयलनो टहूकार - ए मुग्धाने विषकंद समो दुःसह लागे छे । अने क्षणे क्षणे ते तेने प्राण ऊडी जाय तेवी मूर्छामां ढाळी दे छे ।'
शतपत्र
जेना प्रत्येक चरणमा बे षट्कल, छ चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम शतपत्र |
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