Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 169
________________ [ 134] कांचनलेखा जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने एक चतुष्कल ए प्रमाणे दस मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम कांचनलेखा । कांचनलेखा द्विपदीनुं उदाहरण : मणि-'कंचणरेहिअ', सुरसुंदरि जेहिअ ॥ ७० __'रत्न अने कांचनथी शोभती ए अप्सरा समी दीसे छे ।' चारु जेना प्रत्येक चरणमां बे पंचकलनी बनेली दस मात्राओ होय, ते द्विपदीनाम चारु । चारु द्विपदी, उदाहरण : 'चारु' चंपय-रुइ, उअ सोहइ जुअइ ॥ ७१ 'जो, सुंदर चंपकनी कांति धरावती ए युवती केवी शोभे छे !' पुष्पमाला जेना प्रत्येक चरणमा एक त्रिकल, एक षट्कल अने एक त्रिकल ए प्रमाणे बार मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम पुष्पमाला । पुष्पमाला द्विपदी- उदाहरण : एह ललिअ-देह बाल, नाइ जाइ-'फुल्ल-माल' ॥ ७२ 'ललित देह वाळी आ बाळा चमेलीनी पुष्पमाळा जेवी शोभे छ ।' नोंध : आ द्विपदीनुं नाम केटलाकने मते 'तोमर' छ । अन्य द्विपदीओ आ ज प्रमाणे बीजी केटलीक, प्रत्येक चरणमां त्रीश सुधीनी मात्राओ धरावती द्विपदीओ समजवी । तेमनां नामो जाणीतां होवाथी तेमनी व्याख्या आपी नथी। कहुं छे के - 'जेना प्रत्येक चरणमां चारथी मांडीने त्रीश सुधीनी मात्राओ होय, अने जेमां एक के वधु वर्णना बनेला अंत्ययमक होय, तेवां बे चरणना बनेला छंद द्विपदी नामे जाणीता छ ।' चतुर्मात्रादिक-त्रिंशत्-प्रान्तैरहियुगैः ॥ एकानेकैरन्तवर्णैर्यमके द्विपदी विदुः ॥ ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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