Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text ________________
[152]
सद्योहत - न्यंकुभिरस्त्र- दिग्धं, व्याघ्रैः पदं तेषु निधीयते मे ॥
( १६, १५ )
'(वैभवी आवासोनी) जे सोपानपंक्ति पर पहेलां रमणीओनां अळताभीनां चरणोनी रंगीन पगलीओ पडती हती, त्यां हवे हरणने मारीने आवेला वाघना रक्तरंग्या पंजा पडी रह्या छे' ।
बने वच्चेनुं साम्य उघाडुं छे । 'सिंहपद' (सिंहपय) नाम गूंथाय ते रीतनुं उदाहरणपद्य रचवा माटे हेमचंद्राचार्यने 'रघुवंश'ना उपर्युक्त पद्यनुं अवलंबन लेवा माटे संस्मरण थयुं । तेने तेमना 'रघुवंश'ना अनुशीलननुं, काव्यरसना भावकत्वनुं अने तीक्ष्ण स्मृतिनुं सूचक गणी शकीए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204