Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[121] उपकांचीदाम, उपरसनादाम अने उपचूडामणि एवां छे । तेमां यतिनो नियम पण आगळ कह्या प्रमाणे छ ।
उपायामक द्विपदी, उदाहरण : तणु-अंगिहिं लोअण-नलिणिहिं 'उअ आयामिण' केअइ-दलु निज्जिउ । वयणुल्लई कंति-कडप्पिण तह मयलंछण-मंडलु अवहत्थिउ ॥ २६
_ 'ए कृशांगीए पोतानां नेत्रकमळोनी दीर्घताथी केतकीपत्र उपर पण विजय मेळव्यो छे, अने तेना वदने पोतानी अतिशय कांतिथी चंद्रमंडळने पण अपमानित कर्यु छे ।'
नोंध :- ए प्रमाणे बाकीना प्रकारोनां पण उदाहरण समजवां । स्वप्नक
जेना प्रत्येक चरणमां आठ चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ते द्विपदीनुं नाम स्वप्नक ।
स्वप्नक द्विपदीनुं उदाहरण : पिउ आइउ निवडिउ पइहिं सपणय-वयणिहिं अणुणिवि माणु मुआविअ । इअ 'सिविणय'-भरि आलिंगिमि जाहिं ताहिं सहि हय-कुक्कुड रडिअ ॥ २७
___ 'प्रिय आव्यो, पगमां पड्यो, प्रणयवचनथी मने मनावीने मान छोडाव्युं अने स्वप्नमां हुं ज्यां तेने आलिंगन आपुं छु, त्यां तो, हे सखी, दुष्ट कूकडाओ बोली ऊठ्या ।' भुजंगविक्रान्त
ए स्वप्नक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम भुजंगविक्रान्त ।
भुजंगविक्रान्त द्विपदी, उदाहरण : तुह रणि नट्ठ रसायलि, गय अरि कारणि, इणि किर 'भुअंग विक्कंतय' । ताहं विलासभवणि पुरि, लीला-वणि परिअंचहिं निवसहि चिरु गय-भय ॥२८
'तारा शत्रुओ रणसंग्राममांथी नासी जईने पाताळमां पहोंच्या लागे छे : ते कारणे तेमना नगरमां लीला माटेना उद्यानमां अने विलासभवनमां सर्पो निर्भय बनीने वसे छे अने बहादुरीथी हरेफरे छे । ताराध्रुवक
ए स्वप्नक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी
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