Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जलइ सरोवर नीलुप्पल-वणु वणि लय फुल्लिअ नहयलि हिम-किरणु । विरह-रह कई तुह तणु- अंगिहि 'सुहय' विणिम्मिड जलु थलु नहु जलणु ॥ ३२ 'सरोवरमां नीलकमल धगधगी रह्यां छे, वनमां पुष्पित लता धगधगी रही छे अने आकाशमां चंद्र धगधगी रह्यो छे । हे सुंदर, तारा उत्कट विरहमां ए कृशांगीए जळ, स्थळ अने आकाशने धगधगतुं करी दीधुं छे ।'
पवनध्रुवक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, चार चतुष्कल, एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, द्विपदीनुं नाम पवनध्रुवक ।
पवनध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण :
बहु - हय - खर- खुर - खंडिअ - महि-, उट्ठिअ - रइं रिउ - वहु- नीसास - 'पवणधुई' । जसु पाण- छणि अच्छ-जुअल - अणिमिस- नयणत्तणु सुरसुंदरि निंदहिं ॥ ३३ 'ए ( राजवी रणसंग्राम माटे) ज्यारे प्रयाण करे छे, त्यारे अनेक घोडाओनी कठण खरीओथी भोंय तूटी पडतां जे धूळ ऊडे छे अने ए शत्रुनी स्त्रीओना निश्वासना पवनथी आमतेम फंगोळाय छे तेथी, अप्सराओ पोतानी अनिमिष रहेती बने आंखोने वखोडे छे ।'
कुमुद
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल, एक षट्कल, त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम कुमुद ।
कुमुद द्विपदीनुं उदाहरण :
नरु लच्छि - विवज्जिउ, मुच्चइ लोइण, सव्वु - वि ईसर-कय- अणुसरणु । मउलिअ कमलायर, निसि अलि मेल्लिवि, सेवहिं विअसंतउं 'कुमुअ' - वणु ॥३४ 'जगतमां जे माणस लक्ष्मीरहित होय तेने सहु त्यजी दे छे अने जे श्रीमंत होय तेने अनुसरे छे । रात पडतां भ्रमरो बीडायेलां कमळोने छोडीने खीलतां कुमुदो सेवे छे ।'
भाराक्रान्त
जो ए कुमुद द्विपदीना प्रत्येक चरणमां बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम भाराक्रान्त |
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