Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[ 122 ]
यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम ताराध्रुवक ।
ताराध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण :
तुह रिउ वण-गय दिसि मोहिअ, 'ताराध्रुव' अवलोअहिं जावँहिं अवहिअ । बाह - जलाविल- - नयण निअहिं, न हु तावहिं हुअ, हिअडइ मरणासंकिअ॥ २ 'वनोमां भागी गयेला तारा शत्रुओ दिग्मूढ बनीने ध्यानपूर्वक ध्रुवनो तारो जोवा मथे छे, परंतु आंसुथी डहोळायेली आंखोने लीधे ते जोई नथी शकता, तेथी तेमना हृदयमां मरणनो भय प्रगटे छे ।'
नवरंगक
ए स्वप्न द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम नवरंगक । नवरंगक द्विपदीनुं उदाहरण :
दहिअ - अक्खय- घण- चंदण-मालिअ-, नव- 'नव- रंगय' - वावड निअवि पिअ । गाढोक्कंठा - सरलिअ-भुअ- जुउ, अवरुंडई रइ - रस-भर- कंदलिअ ॥ ३०
'प्रियतमाने दहीं अने अक्षतथी मंगळविधि करती, चंदननो गाढ अंगलेप करेली, पुष्पमाला धारण करेली अने नवो कसूंबो पहेरेली जोईने प्रियतम गाढ उत्कंठाथी बने हाथो लंबावीने, भरपूर रतिरसे रोमांचित बनीने, तेने आलिंगन दे छे ।' स्थविरासनक
जेना प्रत्येक चरणमां त्रण षट्कल अने चार चतुष्कल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम स्थविरासनक 1
स्थविरासनक द्विपदीनुं उदाहरण :
दार- विवज्जिअ विसय-परम्मुह, खलिअ - गइ - क्कम, अइ- पसरिअ - वेविअ । वेरग्गिण तवसित्तु पवज्जिवि, ठिअ ' थेरासणि', तुह तरुण-वि वेरिअ ॥३१ 'तारा शत्रुओ पत्नीरहित, विषयविमुख (बीजो अर्थ पोताना राज्यथी रहित), भ्रमणनी गति विनाना, अत्यंत कांपता अने वैराग्निथी तपता वैराग्यने लीधे, ओ तरुण वयना होवा छतां पण, तापस बनीने स्थिर आसन लगावीने बेठा छे ।'
सुभग
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक षट्कल होय, ते द्विपदीनुं
नाम सुभग |
सुभग द्विपदीनुं उदाहरण :
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