Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मागधनर्कुटी
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल, एक गुरु अने ते पछी बे गुरु होय ते छेदनुं नाम मागधनर्कुटी । मागधनर्कुटीनुं उदाहरण :
नव-मयरंद- पाण- पायड- मय - उत्ताला, भमरा रुणरुणंति कायलि-कयसद्दाला ।
पंचममुग्गिरंति एआ अविदिट्ठिओ, चूअंकुर कसाय-कंठा कलयंठीओ ॥ १०३ 'ताजा मकरंदना पानथी जेनो मद ऊछळी रह्यो छे तेवा भ्रमरो काकली स्वरना नादे गूंजी रह्या छे अने आम्रमंजरीना आस्वादथी जेमनो कंठ कषाय बन्यो छे एवी आ मनहर नयनवाळी कोयलो पंचम स्वर उद्गारी रही
'
नर्कुटक
मां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल एक गुरु अने पछी सगण ( - ) होय ते छंदनुं नाम नर्कुटक |
नर्कुटकनुं उदाहरण :
परिमल - लुद्ध-लोल-अलि - गीअ-स' णक्कुडयं',
जाव न जग्गवेइ विसमत्थ - महाभयं ।
माणं मोत्आण माणंसिणि सप्पणयं,
पेम्प - भरेण ताव अणुसर सहि वल्लहयं ॥ १०४
'हे मानिनी सखी, ज्यां सुधीमां परिमलमां लुब्ध बनी डोलता भ्रमरोनुं गूंजन जेना उपर थई रह्युं छे तेवां कुटजपुष्प कामदेवरूपी महान सुभटने जाग्रत न करे त्यां सुधीमां तुं तारुं मान मूकी दईने, प्रेमपूर्वक याचना करीने, तारा प्रियतमनुं शरण ले ।'
समनर्कुटक
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जेमां प्रत्येक चरणमा एक षट्कल, एक जगण अने त्रण सगण (~ ~ -) होय ते छंदनुं नाम समनर्कुटक ।
समनर्कुटकनुं उदाहरण :
सयल - सुरासुरिंद-परिवंदिअ-पाय-तलो,
निरुवम - झाण-नाण-वस- नासिअ - कम्म- मलो ।
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