Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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पांचमो अध्याय
उत्साहादि-वर्णन मंगल अवमनिअदुट्ठ-चित्त-संगमय-चक्क-घाय
जे ते सोच्छाह नाह झायंति तुज्झ पाय । ते ते संसारि वीर कह-वि न लहंति दुक्खु,
जं किर वच्चंति झत्ति पहु निच्छएण मोक्खु ॥ १ 'दुष्ट आशयवाळा (अधमदेव) संगमकना चक्र वडे करायेला प्रहारोने जेणे अवगण्या हता तेवा हे महावीर, जे लोको उत्साहपूर्वक तारा चरण- ध्यान धरे छे, तेओ संसारमां कोई पण प्रकारे दुःखी थता नथी; केम के ए लोको निश्चितपणे तरत ज मोक्ष पामे छे। सुर-रमणी-अण-कय-बहुविह-रासय-थुणिअ,
जोइ-विंद-विंदारय-सय-अमुणिअ-चरिअ । सिरि-सिद्धत्थ-नरेसर-कुल-चूला-रयण,
जयहि जिणेसर वीर सयल-भुवणाभरण ॥ २ 'देवीओए रचेला अनेक विध रासमां जेमनुं स्तोत्रगान करायुं छे अने सेंकडो योगीवों पण जेमना चरितने पामी शक्या नथी, एवा त्रिभुवनभूषण अने सिद्धार्थ राजाना कुळना चूडमणि हे जिनेश्वर महावीर, तारो जय हो ।' रासक (सामान्य संज्ञा)
केटलाकना मते जातिवर्गना बधा छंदो रासक कहेवाय छे । कयुं छे के सयलाओ जाईओ, पत्थाववसेण एत्थ बज्झंति । रासा-बंधो नूणं, रसायणं वेज्झ-गोट्ठीसु ॥ ३
_ 'रासाबंधमां सर्व जातिछंदो प्रस्तुतता प्रमाणे योजवामां आवे छे । काव्यरसिकोनी गोष्ठीओमां रासाबंध खरेखर रसायणरूप छे ।' रासक (विशेष)
अथवा तो पांच चतुष्कल अने एक लघु तथा एक गुरु जेनी प्रत्येक पंक्तिमां होय, तेवो छंद ते रासक । आ व्याख्या प्रमाणेना रासकमां चौद मात्रा पछी यति होवी जरूरी नथी ।
आ प्रकारना रासकनुं उदाहरण :
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