Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 144
________________ [ 109] लेनारां होवा छतां बाणोने, जेम वाचाळ, कठोर अने मर्म वींधती वाणीवाळा, निर्गुण अने प्राणने हरनारा दुर्जनोने सज्जनोनी वच्चे प्रवेश मळतो नथी, तेम प्रवेश मळतो न हतो ।' अथवा तो आ प्रकार, बीजुं एक उदाहरण : चूडुल्लउ चुण्णीहोइसइ, मुद्धि कओलि निहित्तउ । निद्दड्डउ सासाणलिण, बाह-सलिल-संसित्तउ ॥ ११९ 'हे मुग्धा, तें गाल नीचे राखेलो चूडलो, तारा निसासानी आगथी बळी जई, तारा आंसुथी सींचाईने, चूरेचूरा थई जशे ।' जेमां चारे चरणो जुदा मापनां छे तेवी संकीर्णा चतुष्पदी, उदाहरण : तं तेत्तिउ बाहोहजलु, सिहिणंतरि-वि न पत्त । छिमिछिमिवि गंड-स्थलिहि, सिमिसिमिवि सिमिवि समत्तु ॥ १२० __'आंसुना प्रवाहनुं जळ एटलुं बधुं होवा छतां पण ते स्तनोना वचगाळा सुधी पहोंच्युं नहीं : गाल उपर छमछम थईने पडतुं ते समसम करतुं ऊडी गयु ।' । सर्वसमा चतुष्पदी जे चतुष्पदीनां चारे चरणो एकसरखा मापनां होय तेनुं नाम 'सर्वसमा' चतुष्पदी । तेना केटलाक खास प्रकारो आ प्रमाणे छे । ध्रुवक जेनां प्रत्येक चरणमां एक पंचमात्र अने एक चतुर्मात्र होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम ध्रुवक छ । ध्रुवकनुं उदाहरण : जइ वि संखु न करि, तुहुं 'ध्रुवु' मुणिउ हरि । जं विरह-भीअइ, अणुसरिउ सिरिअइ ॥ १२१ ___'जो के तारा हाथमां शंख नथी ते छतां तुं विष्णु होवानुं निश्चितपणे जणाय छे, कारण के जाणे के तारा विरहथी बीती होय तेम श्री तने अनुसरे छ ।' शशांकवदना जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुर्मात्र अने एक द्विमात्र होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम शशांकवदना छे । ___ शशांकवदनानुं उदाहरण : नव-कुवलय-नयण, 'ससंक-वयण' धण । कोमल-कमल-कर, उअ सरय-सिरि किर ॥ १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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