Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[ 114 ]
लय द्विपदीनुं उदाहरण
किउ उरि लच्छिहिँ नि' लउ' करिण कलिउ चक्कु महिअलु धरिउ । बलि - नावँ साहिउ न हु कह-वि हु पहु तुहुं पुरिसोत्तिम चरिउ ॥ ३ 'तारा वक्षःस्थळ पर लक्ष्मीए निवास कर्यो छे, तें हाथमां चक्र धारण कर्यु छे, तें पृथ्वी पर स्वामीत्व मेळव्युं छे, तें केमेय "बलिनुं” (१ | बळवान शत्रुओनुं, २ | बलिदानवनुं) नाम पण सह्युं नथी । हे स्वामी, तें पुरुषोत्तमनुं (विष्णुनुं ) चरित्र प्रगट कर्तुं छे ।'
भ्रमरपद
ज्यारे लय द्विपदीमां दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय त्यारे ते द्विपदीनुं नाम भ्रमरपद छे ।
भ्रमरपद द्विपदीनुं उदाहरण :
॥ ४
ललिअ - विलासोचिअ तविण किलेसहि, सहि किं तणु अप्पणु । मालइ - कुसुम सहइ, 'भमर-पउं', न उण, खर- सउणि- झडप्पणु 'हे सखी, तुं तो ललित विलासने योग्य छो, तो शा माटे तुं तप करीने पोताना देहने कष्ट आपे छे ? मालतीनुं पुष्प भ्रमरनो चरणपात सही शके, नहीं के कोई कठोर पक्षीनो झपाटो ।'
उपभ्रमरपद
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक द्विकल होय अने दस मात्रा पछी तथा आठ मात्रा पछी यति होय ते द्विपदीनुं नाम उपभ्रमरपद । उपभ्रमरपद द्विपदीनुं उदाहरण :
तहि मुद्धहि नेहंधहि किवँ किवणय तुह खलिउ पयट्टु I
'उअ भमर-पएण' वि भज्जइ मालइ - नव- कुसुम विट्टु ॥ ५
'हे अजाण, ए प्रेमांध मुग्धानो तें केम अपराध कर्यो ? जो, मालतीनुं ताजुं विकसेलुं फूल भ्रमरना चरणप्रहारथी पण तूटी पडे छे ।'
गरुडपद
जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते द्विपदीनुं नाम गरुडपद छे ।
गरुडपद द्विपदीनुं उदाहरण :
जसु पारु लहंति कया-वि न वि सुर-गुरु- भिउ-नंदण- पमुह । अरि-पन्नग-‘गरुड पयं 'पिअइ सयलु-वि गुण- गणु सु किवँ तुह ॥ ६
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