Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ [ 34] मयण-विआर-समुद्द-लहरि-वित्थार-कारिणी, जणिआणंद-चंदमणि-निज्झर-सार-सारणी । उच्छलत-लायण्ण-मऊहावलि-पसाहिआ, मज्झ नयण-कुमुआण इमा सा 'चंदलेहिआ' ॥ १०० 'जे मदनविकाररूपी सागरलहरीने विस्तारे छे, जे चंद्रकांत मणिमाथी झरता प्रवाहीना सरस झरणा जेवो आनंद प्रगटावे छ, जे झळहळता लावण्यनां किरणे विभूषित छे तेवी आ मारी प्रियतमा मारा नेत्ररूपी कुमुदो माटे चंद्रलेखा समी छे ।' क्रीडनक जेमा प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल, एक पंचकल अने एक विकल होय तथा आठ मात्रा पछी यति होय, ते छंदनुं नाम क्रीडनक । ___ क्रीडनक, उदाहरण : कंकण-किंकिणि-नेउर-कलयल-मुहलं, पवण-पहल्लिर-सिचयंचिअ-गयणयलं । दीहोच्छल्ल-खेल्लण-कय-लोलणयं, सहइ इमाए अंदोलण-कीलणयं ॥ १०१ 'जे कंकण अने नुपूरनी घूघरीओना रणकारथी मुखर छे, पवने जेनां फरकतां, वस्त्रो अवकाशमां ऊडे छे, जे ऊंचे सुधी ऊछळवानी रमतमां डोली रही छे तेवी आ बाळानी झूला पर झूलवानी क्रीडा शोभी रही छे ।' अरविंदक __ जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक त्रिकल अने अने एक द्विकल होय, ते छंदनुं नाम अरविंदक । अरविंदक, उदाहरण : उअह तुज्झ विरहे इमाइ मुह-कमलं, अविरल-बाह-धारा-विलुलिअ-कज्जलं । अब्भ-लेह-पिहिअं व पुण्णिम-चंदयं, सेवल-संवलिअं व न वारविंदयं' ॥ १०२ 'तुं जो तो, सतत वहेती अश्रुधाराथी जेनुं काजळ फेलाई गयुं छे तेवू आ बाळानुं मुखकमळ मेघरेखाथी ढंकायेला पूनमना चंद्रसमुं के शेवाळथी छवायेला ताजा खीलेला अरविंद समुं दीसे छे ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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