Book Title: Chhandonushasan
Author(s): Hemchandracharya, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[ 321 'जेमां मदमत्त कोयलोथी उद्घोषित थतो पंचम स्वर सभर छे, जे व्याकुळ बनीने भ्रमण करता भ्रमरोना गुंजनथी रमणीय छे, जेमां प्रबळपणे फंकातो मलयानिल प्रफुल्ल केसरतरुओने धुणावी रह्यो छे एवा आ वसंतना दिवसो खरेखर कोना हृदयने क्षुब्ध नथी करता ?' द्विपदी
जेमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक गुरु होय तथा बीजा अने छठ्ठा चतुष्कलने स्थाने जगण के चार लघु होय, ते छंदनुं नाम द्विपदी ।
द्विपदी, उदाहरण : मा रे वच्च पहिअ निअ-दइअं परिहरिऊण सव्वहा,
इह हि समुत्थरंत-कुसुमायर-मास-मुहम्मि अनहा । परहुअ-जुवइ-गीअ-हालाहल-विहलंघलिअ-चित्तओ,
चलसि न 'दुवइअं' पि वम्मीसर-सर-निरंब-छित्तओ ॥९६ _ 'अरे पथिक, तारी प्रियतमाने छोडी दईने आ सर्वत्र व्यापी रहेला वसंतमासने आरंभे, तुं प्रवासे नीकळ नहीं। नहीं तो, कोयलोना गीतरूपी हळाहळ झेरथी व्याकुळ चित्तवाळो बनीने कामदेवनी बाणावळीथी विधायेलो तुं बे पगलां पण चाली शकीश नहीं ।'
__नोंध : आ संदर्भमां बीजी केटलीक पण सुमना, तारा, ज्योत्स्ना, मनोवती वगेरे साडतीश गणसमा द्विपदीओ अने विपुला, चपला वगेरे बीजी आठ अर्धसमा द्विपदीओ केटलाके निरूपण कर्यु छे, परंतु ए छंदोनो अहीं निरूपित केटलाक छंदोमा समावेश थई जतो होवाथी तेमनुं अमे अलग निरूपण कर्यु नथी । रचिता
जो द्विपदीमा पहेला चतुष्कलने स्थाने चार लघु होय अने सात मात्रा पछी यति होय, तो ते छंदन नाम रचिता, अथवा तो केटलाकने मते रचिका ।
रचितानुं उदाहरण : नच्चिर-कीर-मिहुण-कोलाहल-मुहलिअ-कलम-छेत्तओ,
दिम्मुह-महमहंत-गंधुक्कड-विअसिअ-सत्तवण्णओ। विरइअ'-मुद्ध-दुद्ध-सुंदेरिम-अविरल-कास-हासओ,
पिअ-सहि मा पिअम्मि परिकुप्पसु जं सरओ समागओ ॥९७ 'हे सखी, जेमां कलमशालिनां खेतरो नाचतां पोपटयुगलोना कलकलाटथी
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