Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ पाएगा। बूंद सागर में गिरने को तैयार हो तभी वह सागर हो पाएगी। बूंद, कभी बूंद नहीं रह सकती। वह गिरेगी चाहे धूल में गिरे और मिट जाए, गर्म पत्थर या लोहे पर गिरकर भष्म हो जाए, किसी पत्ते पर गिरे और ओस हो जाए, सीप के मुंह में गिरे और मोती हो जाए या सागर में गिरे और विराट सागर हो जाए । बूंद को तो मिटना ही है, जिन्दगी को एक दिन समाप्त होना है, यह तो आपके दृष्टिकोण पर निर्भर है कि आप उस बूंद (जीवन) का कैसा उपयोग करना चाहते हैं। खुद क्या होना चाहते हैं । अपने आप को क्या बनाना चाहते हैं ? धूलिसात् होना चाहते हैं, जहर युक्त बनना चाहते हैं, अस्तित्व में मिट जाना चाहते हैं या मोती बनना चाहते हैं, विराट सागर हो जाना चाहते हैं? ध्यान करने से कोई साक्षात् देवी-देवता दिखाई नहीं देते। तुम ही साक्षात् देव होते हो, देवी होते हो । दिव्यता तुममें आती है । भगवान् नहीं आते, भगवत्ता आती है । तुम्हारी ही भगवत्ता ! बस, यह समझो एक बरगद निखरता है, बीज में समाया बरगद । इसलिए इस भ्रम में कभी न रहना कि तुम किन्हीं अवतारों का दर्शन कर अपनी सांसारिक कामना की पूर्ति कर लोगे । ऐसा कभी नहीं होगा । ध्यान तो खुद जीवन का आधार है । जीवन के आधार को सुदृढ़ करने का आधार है। ध्यान इसलिए है कि हमारी मौलिक अन्तरदृष्टि खुल जाए। ध्यान के द्वारा आपकी स्वयं की चेतना जाग्रत होगी और आप तांत्रिक-मांत्रिक से छुटकारा पा सकेंगे। उन लोगों के पास जाकर उलझनें नहीं सुलझवानी पड़ेंगी। तुम्हारा विवेक तुम्हें निर्णय करने की क्षमता देगा । ध्यान वह शक्ति, बल व ऊर्जा देता है जिससे हम अपनी समस्याओं का निराकरण करने खुद सक्षम हो जाते हैं । ध्यान वह समझ है जो समस्याओं को समझने की क्षमता देता है । ध्यान हमें कोई मंत्र-तंत्र नहीं अपितु वह समझ और विवेक देता है कि हम अपने जीवन में चलने वाले झंझावात का सामना कर सकें। वह कीमिया देता है कि पंडित और मौलवी या पादरी के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। तुम अपनी समस्याओं को कितनी सुलझा पाओ यह तुम्हारी प्रबुद्धता, श्रम व तुम्हारी नियति पर निर्भर करेगा पर अपनी समस्याओं को समझने की क्षमता तो जरूर रखोगे। तुम्हारे पास वह मार्ग, वह मौलिक अन्तरदृष्टि होगी । इसके लिए कहीं खोजने नहीं जाना पड़ेगा । ध्यान इसका आधार है। ध्यान, जीवन में भोजन के समान जरूरी है, मानसिकता के लिए, आत्मिक परितृप्ति के लिए । मैंने भी बहुत से तौर-तरीके अपनाए, नानाविध क्रियाएं कीं लेकिन पाया अमृत की अभीप्सा / ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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