Book Title: Chetna ka Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 33
________________ आनन्दपूर्ण रहेंगे। स्थितिप्रज्ञ होकर जिएंगे। हमारे मानसिक संतुलन में दुराव-भटकाव नहीं आएगा । प्रयास कीजिए जितने विकार कम हो सकें, हमें करते रहना चाहिए। जैसे आप मंदिर जाने के लिए प्रतिदिन स्नान करते हैं उसी तरह यह भीतर का भी स्नान है । भीतर का प्रकाश प्रगट हो सकता है लेकिन कांच के गोले से ढंका हुआ प्रकाश जो कालिमा में छुपा हुआ है कालिमा के पौंछते ही प्रकाश बाहर तक आएगा । कालिमा कल फिर चढ़ेगी, कल फिर कांच को मांजना होगा । ध्यान इसीलिए है । यहाँ तो सिर्फ अभ्यास है, प्रवेश करवाया जा रहा है। ध्यान प्रतिदिन करना है । भीतर का स्नान, भीतर का जागरण, भीतर की शुद्धि प्रतिदिन होनी चाहिए । यही मनुष्य का कायाकल्प है । यही चेतना के विकास का फार्मूला है । चित्त शुद्धि के लिये सदा सतर्क रहो। अधर्म की सम्भावना जीवन-भर रहती है, इसलिए धर्म का शिविर जीवन भर चलना चाहिए । यह शिविर चित्त-शुद्धि और चेतना के विकास का आयोजन है, तुम्हारे रचनात्मक निर्माण का, तुम्हारी मानसिक और चेतनागत ऊर्जा के विकास का उपक्रम है । तीव्र श्वासोश्वास के समय शरीर में कंपन क्यों? मेरे प्रभु, अभी तो शरीर सिर्फ कंप रहा है । मन तो कंपता हुआ बहुत देखा, आज शरीर को कंपता हुआ देख रहे हो । अगर कोई व्यक्ति सरोवर में कंकरी फेंकेगा और आप कहो कि सरोवर आंदोलित नहीं होना चाहिए, यह कैसे सम्भव है? अपना अहोभाग्य समझिए कि कुछ तो कांपा, चित्त न सही शरीर ही सही। आज शरीर कांपा है कल चित्त भी कांपेगा । वह भी हिलेगा-डुलेगा और कांपना ही चाहिए। यह तो एक प्रसव पीड़ा से गुजरना है । हमारे भीतर जो बालक सोया हुआ है उसे बाहर लाना है । सारे पुरुषों को माँ होना है और मैं इसी कोशिश में हूँ । आप को अभी तक माँ होने का कोई अनुभव नहीं है। महिलाओं को अनुभव है । इसलिए मैं आपके सोए हुए मातृत्व को जगाना चाहता हूँ । भीतर के शैशव को, भीतर की खुमारी को, आनन्द को जगाना चाहता हूँ। अपने भीतर अपने ही प्रयासों से कुछ पैदा करना स्वयं का सृजन है । अन्तर्जगत् में अनुभवों का निष्पन्न होना मनुष्य के लिए उसका अन्तर् - प्रसव ही है । बाईबिल कहती है, प्रभु बच्चों को मिलते हैं, बच्चों में प्रवेश करते हैं, बच्चों मनुष्य का अंतरंग / २८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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